कोरोना अपडेट : बीते 24 घंटे में यूपी में कोरोनावायरस से 372 मौतें, मई में बना रिकार्ड, कई जानकारियां पढ़ कहेंगे उफ्फ बिना पैसों नहीं होगा इलाज :- उन्नाव निवासी रामशंकर के लिए 17 अप्रैल का दिन अच्छा नहीं था। उस दिन के बाद तो घर में सब कुछ खत्म हो गया। पत्नी जलज और बेटे सुशील (23 वर्ष) कोरोना संक्रमित हो गए। पत्नी तो ठीक होने लगी पर जवान बेटा तो बुरे हालात में आा गया। उन्नाव से कानपुर गए कहीं बेड नहीं मिला। तीन दिन बाद बेटे को लेकर लखनऊ आए। यहां एक निजी अस्पताल में बेड मिल गया। डाक्टरों ने पहले अस्सी हजार रुपए जमा कराए। और प्रतिदिन 25 हजार का खर्च बताया। रामशंकर क्या करते जो जमा पूंजी थी वह पहले ही खर्च कर चुके थे। पैसों की और जरूरत पड़ी तो बेटी की शादी के जेवर बेच दिए। रामशंकर को 3.30 लाख रुपए मिले।
मिसाल : किसी ने सब्र और किसी ने दृढ़ इच्छाशक्ति से कोरोना को हराया आपकी आखें भर आएंगी :- छोटी सी परचून की दुकान से रामशंकर के घर का खर्चा चलता था। इलाज के लिए और पैसे चाहिए थे। अंत में रामशंकर ने अपना पुश्तैनी घर गिरवी रखने का फैसला किया। अस्पताल में भर्ती बेटे सुशील को जब यह पता चला तो अस्पताल के एक वार्ड ब्वाय के मोबाइल से पिता से बात की। उसने पिता से जो कहा उसे पढ़कर आपकी आखें भर आएंगी।
मुझे भगवान भरोसे छोड़ दो :- चार मई की शाम को सुशील ने पिता से कहाकि, पापा! मुझे भगवान भरोसे छोड़ दो, घर गिरवी न रखना,और कोरोना ने बेटे की छीनीं सांसें मेरे इलाज के लिए मम्मी के जेवर बिक गए। आपके खाते में जो पैसे थे वे भी खत्म हो गए। मुझे पता चला है कि आप उन्नाव बाई पास वाला घर आप गिरवी रखने जा रहे हैं। मेरा इलाज कराने में सब बरबाद हो जाएगा। पम्मी (बहन) की शादी कैसे होगी। मैं बचूंगा या नहीं, यह पक्का नहीं है। मुझे भगवान भरोसे छोड़ दो।’ तीन दिन बाद सुशील ने इस रहती दुनिया को अलविदा कह दिया।
अंतिम संस्कार कर दिया :- शुक्रवार सुबह सुशील के निधन की खबर सुन पिता बेहोश होकर गिर पड़े। अस्पताल प्रशासन की तरफ से मुहैया कराई गई एम्बुलेंस से बेटे का शव आलमबाग शमशान घाट पहुंचा। जहां उसका अंतिम संस्कार हुआ।