हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार नहीं किया याचिकाकर्ता के वकील फुजैल अहमद अय्यूबी ने हाईकोर्ट के समक्ष रखे गए मुद्दों में से एक का सुप्रीम कोर्ट में उल्लेख किया था। इसमें लिखा गया था कि क्या सरकार धारा 196 के तहत आपराधिक मामले में ऐसे व्यक्ति के लिए आदेश पारित कर सकती है जो उसी बीच राज्य का मुख्यमंत्री चुना जाता है और अनुच्छेद 163 के तहत कार्यकारी प्रमुख है। वकील ने कहा था कि, हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर विचार नहीं किया।
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सीएम योगी के ओएसडी की सड़क हादसे में मौत, पत्नी की हालत गंभीर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, एक और मुद्दा है इस पर पीठ ने पूछा, एक और मुद्दा है। एक बार जब आप निर्णय के अनुसार योग्यता पर चले जाते हैं और सामग्री के अनुसार, यदि कोई मामला नहीं बनता है तो मंजूरी का सवाल कहां है। अगर कोई मामला है, तो मंजूरी का सवाल आएगा। अगर कोई मामला ही नहीं है तो मंजूरी का सवाल कहां है। अय्यूबी ने कहा,ए मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के कारण ही केस में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई है।
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– यूपी सरकार ने टमाटर फ्लू पर जारी की एडवाइजरी इस मामले में कुछ बचा ही नहीं – वकील मुकुल रोहतगी यूपी सरकार का पक्ष रखते हुए वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि, इस मामले में कुछ बचा ही नहीं है। सीएफएसएल के पास सीडी भेजी गई थी और पाया गया कि उसके साथ छेड़छाड़ हुआ था। साथ ही याचिकाकर्ता ने जो मुद्दा उठाया है हाईकोर्ट ने उस पर ध्यान दिया है।
2007 में गोरखपुर में हुआ था दंगा याचिकाकर्ता परवेज परवाज का कहना था कि, तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के भाषण के बाद 2007 में गोरखपुर में दंगा हुआ था। इसमें कई की जान चली गई थी। साल 2008 में दर्ज एफआईआर की राज्य सीआईडी ने कई साल तक जांच की। उसने 2015 में राज्य सरकार से मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी। याचिका में कहा गया कि, मई 2017 में राज्य सरकार ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। जब राज्य सरकार ने मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार किया, तब तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। ऐसे में अधिकारियों की तरफ से लिया गया यह फैसला दबाव में लिया गया हो सकता है।