हाईकोर्ट में आशीष मिश्र मोनू की जमानत अर्जी पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था। जस्टिस राजीव सिंह की बेंच के सामने आशीष के वकील ने दलील रखी कि अगर प्रॉसीक्यूशन की बात सही भी मानें तो अजय मिश्र सिर्फ चालक की सीट के बगल में बैठे थे और फिर वह भाग गए थे। ऐसा कोई सबूत नहीं है कि आशीष के निर्देश पर थार कार के ड्राइवर ने प्रदर्शनकारियों पर गाड़ी चढ़ाई थी। या फिर ऐसा कृत्य जानबूझकर किया गया। ऐसे में ये भी नहीं कहा जा सकता कि मिश्रा लोगों की मौत के जिम्मेदार हैं।
यह रखे गए तर्क – कोर्ट को बताया गया कि आरोपी आशीष मिश्रा गाड़ी नहीं चला रहे थे। ऐसे में ड्राइवर के द्वारा किए गए अपराध के लिए आशीष मिश्रा को जिम्मेदार कैसे बताया जा सकता है।
वकील ने ये भी दलील रखी कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किसी भी पीडि़त को गोली लगने के घाव की बात नहीं है।
कोर्ट के सामने यह तथ्य पेश किया गया कि पुलिस की तरफ से दाखिल की गई चार्जशीट में सुप्रीम कोर्ट के नामित एसआईटी के अफसरों के दस्तखत नहीं हैं। ऐसे में हम इस चिट्ठी को अवैध मानते हैं।
एसआईटी ने कहा था सोची समझी साजिश उत्तर प्रदेश पुलिस के विशेष जांच दल (एसआईटी) ने हिंसा मामले में आशीष समेत 14 अभियुक्तों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया था। एसआईटी ने कहा चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या की घटना एक सोची-समझी साजिश थी। एसआईटी ने दावा किया था कि यह लापरवाही का मामला नहीं था।
शिकायतकर्ता के वकील नहीं दे सके ठोस सुबूत शिकायतकर्ता के वकील कोर्ट को कोई सबूत नहीं दे सके। अंत में, जब न्यायालय मिश्रा की जमानत याचिका में आदेश सुरक्षित रखने वाली थी, तब उनके द्वारा एक सुधार आवेदन दायर किया गया, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। लेकिन इससे पहले जमानत दे दी।
क्या कहा विपक्ष – “क्या व्यवस्था है! चार किसानों को रौंदा, चार महीनों में ज़मानत”
-आरएलडी चीफ जयंत चौधरी – “किसानों का नरसंहार करने वाले के पिता से प्रधानमंत्री ने इस्तीफा क्यों नहीं लिया? छह किसानों को कुचलने वाले को आज जमानत मिल गई। अब वो खुलेआम घूमेगा”
-कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी – “ख़बरदार रहना ज़ुल्मी हुकूमत की सियासत से उनके पाले-पोसे बाहर आ रहे हैं हिरासत से” -अखिलेश यादव, सपा अध्यक्ष