ऐसे हुई शुरूआत खान बहादुर शेख सिद्दीकी अहमद साहब की ऊर्दू में लिखी गई किताब अंजुमन-ए-हिंद में कैनिंग कॉलेज की स्थापना की विस्तृत जानकारी दी गई है। उसके अनुसार, भारत के गवर्न जनरल लॉर्ड चालर्स कैनिंग की मृत्यु के बाद अवध के ताल्लुकेदारों ने उनके सम्मान में स्कूल खोला था। 18 अगस्त 1862 में अवध में बैठक हुई। 22 नवंबर को ताल्लुकेदार्स की दूसरी बैठक में इस आशय की सूचना सरकार को देने पर सहमति बनी। तीसरी बैठक 7 दिसंबर 1862 को हुई, जिसमें तय किया गया कि हर ताल्लुकेदार अपने यहां की मालगुजारी (कर के रूप में प्राप्त रकम) का आधा फीसदी इस शैक्षणिक संस्था को देगा। इसी रकम के बराबर की राशि सरकार से देने का अनुरोध किया जाएगा। सरकार ने ताल्लुकेदारों के इस प्रस्ताव को मान लिया। 1 मई, 1864 को कैनिंग कालेज की शुरूआत हुई।
आठ छात्रों से हुई डिग्री कक्षाओं की शुरूआत 1864 में स्थापना के बाद शुरूआत के दो साल तक यहां हाईस्कूल की पढ़ाई होती थी। उस दौरान आगरा कॉलेज के प्रिंसिपल टॉमस साहब की निगरानी में यह विद्यालय कलकत्ता विवि से संबद्ध था। कैनिंग कॉलेज में पढ़ाई की शुरूआत डिग्री कक्षाओं से की गई। तब शुरूआत में सिर्फ आठ विद्यार्थी हुआ करते थे। अवध के कमिश्नर को इस विद्यालय समिति का अध्यक्ष व अंजुमन-ए-हिंद के सचिव को इसका सचिव बनाया गया। इनकी निगरानी में विश्वविद्यालय का संचालन होता था।
इताहिसकार योगेश प्रवीण ने बताया कि शुरूआत के दो साल बाद हाईस्कूल को कैनिंग कालेज में परिवर्तित किया गया था। शुरूआती दिनों में कॉलेज का अपना कोई भवन नहीं था। इसलिए समय-समय पर कॉलेज की जगह बदली जाती थी। कैसरबाग (वर्तमान में, राय उमानाथ बली ऑडिटोरियम और भातखंडे संगीत संस्थान) में कॉलेज ने छोटी सी जगह पर अपनी खुद की एक इमारत ली। लेकिन स्पेस की कमी के कारण कैनिंग कॉलेज की जगह एक बार फिर बदल दी गई। 1878 में, कैनिंग कॉलेज का पता बादशाह बाग, हसनगंज हो गया। तब से लेकर आजतक यह कॉलेज यहीं स्थित है। नए भवन की आधारशिला 13 नवंबर, 1867 को सर जॉन लॉरेंस द्वारा रखी गई थी, लेकिन इसके तैयार होने में लगभग 11 साल लग गए थे।
पहला एकैडमिक सेशन 1921 में 13 अगस्त 1920 को इलाहाबाद विवि में ले. गवर्नर सर हरकोर्ट बटलर की अध्यक्षता में विशेष बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय स्थापित करने की इच्छा जाहिर की। साथ ही यूनिवर्सिटी और स्कूल टीचिंग के बीच की लाइन इंटरमीडिएट करने की बात भी तय हुई। लखनऊ विश्वविद्यालय में 1921 में शुरू हुए पहले शैक्षिक सत्र में डिग्री के साथ ही 12वीं के विद्यार्थी भी थे। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रो वाइस चांसलर, जीएन चक्रवर्ती लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे। विश्वविद्यालय का पहला दीक्षांत समारोह 1922 में आयोजित किया गया था।