विदेश से पढ़ने आ रहे हिंदी लखनऊ यूनिवर्सिटी की हिंदी डिपार्टमेंट की एचओडी प्रेम सुमन शर्मा के मुताबिक हिंदी को किसी भाषा से कोई खतरा नहीं है। इसका प्रचार -प्रसार बढ़ता ही जा रहा है। इस बार तकरीबन 5 साल के इंतजार के बाद एलयू मे पांच विदेशी बच्चे हिन्दी को समझने, जानने और सीखने पहुंचे और दो ही महीने में हिन्दी उनमें रच-बस गई है। लखनऊ यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग में 90 के दशक में सुगम हिन्दी का एक साल का प्रोफिशिएंसी कोर्स शुरू हुआ था। लगभग 20 साल तक कोर्स में कुछ खास नहीं हुआ, फिर 2012 में यहां विदेश से कुछ बच्चे हिन्दी सीखने आए। अब पांच साल बाद यानी 2017 में एक बार फिर थाईलैंड के पांच युवाओं ने यहां दाखिला लिया है। इनमें तीन लड़कियां व एक लड़का हिन्दी प्रोफिशिएंसी कोर्स में पंजीकृत हैं और एक लड़की ने बीए में दाखिला लेकर फंक्शनल हिन्दी को बतौर विषय चुना है।
बढ़ रहा रोजगार हिंदी में पीएचडी कर रहे आनंद कुमार का कहना है कि उन्होंने अपनी रिसर्च में पाया कि पिछले कुछ साल में हिंदी के विशेषज्ञों ने काफी तरक्की की है। कई डिपार्टमेंट ऐसे हैं जहां हिंदी के विशेषज्ञों को नौकरी पर रखा जाने लगा है। विभिन्न विभागों में अनुवादक की वैकेंसीज भी काफी बढ़ी हैं। इसके अलावा रिसर्च करने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ी है। विदेश से लोग हिंदी सीखने आ रहे हैं। सरकार को अब इसे राष्ट्रभाषा बनाने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।
हिंदी में होगी इंजीनियरिंग की पढ़ाई ऑल इंडिया काउन्सिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) अंग्रेजी के साथ हिन्दी में भी पढ़ाई की व्यवस्था लागु करने जा रही है। जिससे छात्र व छात्राओं को पढ़ने में आसानी होगी और किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। एआईसीटीई के वाइस चेयरमेन प्रो. एमपी पुनिया ने राजधानी लखनऊ में यह जानकारी दी थी।। प्रो. एमपी पुनिया ने बताया कि पहले दो साल छात्रों को दोनों भाषाओं में पढ़ाया जायेगा, जिससे वह अंग्रेजी सीखने के साथ भी इंजीनियरिंग भी ठीक से समझ सके और अपना बेहतर भविष्य बनाने में पूर्ण रूप से कायम हों सकें।
मातृ भाषा का उपयोग जरूरी बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी का कहना है कि अगर कोई देश अपनी संस्कृति, उपलब्धियों को जन जन तक पहुंचाना चाहता है तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह अपनी मातृ भाषा का सहारा ले। बिना मातृ भाषा के कोई भी देश सशक्त नहीं बन सकता है. भारत भी उन्हीं में से एक है. हिंदी हमारी संस्कृति और अस्मिता का अभिन्न अंग है। उन्होंने यह बात राजधानी में एक कार्यक्रम के दौरान कही।
प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी कहा कि आज फेसबुक, ट्विटर, इंस्ट्राग्राम जैसे सोशल मीडिया पर इंग्लिश भाषा का प्रयोग हो रहा है। यह हिंदी के लिए बेहद खतरनाक है। हमें आधुनिकता के साथ हिंदी का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। उनके मुताबिक, भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं का दर्जा दिया गया जिसमें सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी ही है। देश के 41% लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। सिद्ध है कि हिन्दी भाषा को भारत के सबसे ज़्यादा लोग समझते हैं। मॉरीशस और तमाम देशों में हिंदी पढ़ी और लिखी जा रही है।