कई महीनों के इलाज के बाद मां ने दम तोड़ा हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि, माता-पिता बच्चों के अभिभावक होते हैं और उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि नाना-नानी अगले चार महीने तक हर रविवार सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे के बीच अपने पिता के आवास पर बच्चे से मिल सकते हैं। विनायक त्रिपाठी का जन्म 31 अक्टूबर 2013 को हुआ था। एक दुर्घटना में उनकी मां झुलस गई थी। उसका कई महीनों तक अस्पताल में इलाज चला लेकिन बाद में उसने दम तोड़ दिया।
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लखनऊ हाईकोर्ट का अनोखा आदेश, रेप के आरोपी को पीड़िता से शादी करने की शर्त पर दी जमानत दीपक ने ससुराल पक्ष की रजामंदी से की थी शादी दीपक त्रिपाठी ने अपनी सभी जिम्मेदारियों को निभाया और पूरे इलाज के दौरान अपनी पत्नी का साथ दिया। दीपक ने ससुराल पक्ष की रजामंदी से 4 मार्च 2015 को एक विधवा से शादी की। दूसरी पत्नी से उसके दो बच्चे हैं। इस दौरान दीपक ने अपने बेटे को वापस पाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंतिम उपाय के रूप में, उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का दरवाजा खटखटाया।
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बिकरू कांड में हाईकोर्ट ने दी पहली जमानत कहा, शर्तों को तोड़ा तो जेल तय नाना-नानी बूढ़े हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहाकि, नाना-नानी बूढ़े थे और उनके लिए एक नाबालिग बच्चे की देखभाल करना बहुत मुश्किल होगा। याचिकाकर्ता, पिता बच्चे के असली अभिभावक है और परिवार की सहायता से बच्चे की बेहतर तरीके से देखभाल कर सकता है।
अच्छा वेतन पाता है पिता हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यह भी देखा कि, याचिकाकर्ता (पिता) बच्चे की देखभाल करने के लिए आर्थिक रूप से भी बेहतर स्थिति में था क्योंकि वह एक प्रतिष्ठित शिक्षक था और एक अच्छा वेतन प्राप्त कर रहा था। अदालत ने आगे कहा कि समाज में याचिकाकर्ता का आचरण और व्यवहार भी अच्छा था और इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं था कि उसे अपने बच्चे की कस्टडी न मिले।