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नहीं मिल रहा कोई खरीदारमार्च का महीना शुरू होते ही किसान खेत में आलू की खुदाई शुरू कर दिए हैं। लेकिन उनके सामने एक बहुत बड़ी समस्या आ रही है। आलू खरीदने के लिए कोई खरीदार नहीं मिल रहा है। अगर कोई खरीदने को भी तैयार है तो सही भाव नहीं दे रहा है।
किसानों का दर्द सरकार तक पहुंचा तो योगी सरकार ने आलू के न्यूनतम मूल्य को तय कर दिया। लेकिन अब इस पर राजनीति शुरू हो गई है। अब सवाल ये उठ रहे हैं कि आलू किसानों की दुर्दशा की वजह क्या है? ये नौबत आई क्यों और सरकार जो प्रयास कर रही है, वे कितने कारगर होंगे? इन सबका जवाब जानने से पहले लागत और नफा-नुकसान का गणित समझना जरूरी है।
यूपी में लगातार आलू की पैदावार बढ़ रही है। ऐसे में आलू को रखने के लिए सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। अगर हम पिछले 5 साल के आंकड़ों को देंखे तो स्थिति साफ हो जाती है।
वर्ष – उत्पादन (लाख टन) 2018 – 19 155.23 2019 – 20 140.04 2020 – 21 158.40 2021 – 22 242.75 2022-23 – 242.93 (अनुमानित)
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भंडारण के मुकाबले आलू की पैदावार ज्यादायूपी में इस साल लगभग 242.93 लाख टन की आलू की पैदावार हुई है। कोल्ड स्टोर में रखने की क्षमता 162 लाख टन है। इस बार प्रदेश में कुल उत्पादन के मुकाबले भंडारण क्षमता कम है। कोल्ड स्टोर में जितनी क्षमता है, उसका भी 80-85% आलू ही जमा होता है। सरकार ने 10 लाख मीट्रिक टन आलू खरीदने का लक्ष्य तय किया है। जबकि इस साल 242 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा आलू की पैदावार हुई है।
अब बात मौसम की करते हैं। बेमौसम बारिश और घटता-बढ़ता तापमान फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इस बार अक्टूबर में बारिश हो गई, जिससे खेतों में पानी भरा रहा। इससे किसान अगेती फसल की बोआई नहीं कर पाए। उसके बाद जब मौसम सही हुआ तो फिर सबने आलू बो दिया। इस तरह 10 प्रतिशत आलू सीजन में ज्यादा हो गया।
जब फसल की ज्यादा पैदावार हो जाती है तो किसानों के सामने संकट खड़ा हो जाता है। ऐसे में सरकार किसानों को उचित मूल्य दिलाने के लिए प्रयास करती है। इसी वजह से योगी सरकार ने अब निर्यात शुरू किया है। लेकिन वह उत्पादन के मुकाबले काफी कम है। नेपाल से हाफेड ने 15000 मीट्रिक टन का कॉन्ट्रेक्ट किया है। वहीं, आगरा से मलेशिया, दुबई और कतर के लिए अभी 600 मीट्रिक टन आलू भेजा गया है। पहले फेज में हाफेड राज्य के 7 जनपदों में क्रय विक्रय केंद्र स्थापित होगा।