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लखनऊ

Eid-ul Fitr 2021 : ईद-उल फित्र आज, रौनक गायब, घरों में पढ़ी गई नमाज, जरूरतमंदों को बांटी जा रही ईद किट

Eid-ul Fitr 2021 : ऐसा पहली बार है जब मस्जिदों में सिर्फ पांच लोगों ने ही नमाज (Namaz) पढ़ी। घरों में ही नमाज पढ़कर दुआएं मांगी गईं। लोगों ने मोबाइल (Mobile) से एक दूसरे को बधाई संदेश दिया।

लखनऊMay 14, 2021 / 11:52 am

Neeraj Patel

Eid-ul Fitr 2021

Eid-ul Fitr 2021 celebrated today 14 May 2021

लखनऊ. Eid-ul Fitr 2021 : रमजान उल मुबारक के पवित्र 30 रोजे पूरे कर पूरे देश में अकीदत के साथ ईद उल फित्र (Eid ul Fitra) मनाई जा रही है। यह पहला मौका है जब लॉकडाउन (Lockdown) की पाबंदियों की वजह से मस्जिदों में सिर्फ पांच लोगों ने नमाज अदा की। बाकी लोग अपने घरों में नमाज अदा कर एक दूसरे को खुशियां बांट रहे हैं। मोबाइल से बधाई संदेश भेजे जा रहे हैं। ऐसा पहली बार है जब इस खुशी के मौके पर लोग एक दूसरे के गले न मिलकर सिर्फ दुआएं दे रहें हैं।

लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह, टीले वाली मस्जिद और आशिफी इमामबाड़ा सहित अन्य मस्जिदों में शुक्रवार होने के बावजूद सन्नाटा पसरा है। इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया फरंगी महल (Islamic Center of India Farangi Mahal) के अध्यक्ष और ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी ने इस मौके पर दुआ की है जल्द ही देश को महामारी से निजात मिले। शिया धर्मगुरू मौलाना कल्बे जव्वाद ने सुबह 11 बजे अपने घर पर ही चार अन्य लोगों के साथ नमाज अदा की। मजलिसे उलमाए हिंद की बेवसाइट और हुसैनी चैनल पर नमाज और खुतबा को लाइव प्रसारण किया गया।इस मौके पर जरूरतमंदों को ईद किट बांटी गयी।

मुबारक हो गूंजी सदाएं

शुक्रवार की सुबह से ही मुबारक हो की सदाएं फिजां में गूंजने लगीं। मोबाइल पर भी बधाई के काल और एसएमएस आने लगे। मोबाइल पर बधाई की कालें और एसएमएस आने शुरू हो गए।

खुशियां बांटने का जरिया है ईद

ईद का मतलब केवल यह नहीं कि महीने भर जो इबादत करके नेकियों की पूंजी एकत्र किया है उसे बुरे और बेहूदा कामों में जाया कर देना बल्कि ईद का मतलब है कि दूसरों को खुशियां बांटना। दूसरों की मदद करना ईद का सबसे बड़ा मकसद है। सन् दो हिजरी में सबसे पहले ईद मनायी गई। पैगंबरे इस्लाम नबी ए करीम हजरत मोहम्मद का वो दौर था।

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गंगा-जमुनी तहजीब है बनारस की ईद

बनारस में ईद का त्योहार घरों में मन रहा है। यहां ईद का इतिहास प्राचीन है। यहां यह त्योहार सौहार्दपूर्ण ढंग से मनाया जाता है। देश भर में गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है बनारस की ईद। बनारस के मुसलमानों की ईद को देखकर कुतुबुद्दीन ऐबक को आश्चर्य हुआ था। उसने तब कहा था ईद की नमाज के बाद बनारस में जो सौहार्दपूर्ण माहौल था, उसमें हिंदू-मुसलमान की पहचान करना मुश्किल था। मुस्लिम सत्ता की स्थापना से पूर्व ही बनारस में मुस्लिम न सिर्फ आ चुके थे बल्कि कई मुस्लिम बस्तियां भी बस गई थीं। दालमंडी के निकट गोविंदपुरा और हुसैनपुरा में ईद की नमाज सबसे पहले पढ़े जाने का संकेत तवारीखी किताबों से जाहिर है। यह बनारसी तहजीब थी जो देश में मुस्लिम सत्ता की स्थापना के पूर्व ही काशी में मौजूद थी।

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