डॉ रितु त्रिवेदी ने मेटाबोलिक अस्थि रोग (विकार) के क्षेत्र में उल्लेखनीय वैज्ञानिक योगदान दिया है, जिसमें रजोनिवृत्ति के बाद ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उनके काम से कई प्राकृतिक संसाधनों से संभावित औषधि उत्पादों को इजात करने में मदद मिली है, जो मुख्य रूप से हड्डियों को स्वस्थ्य रखने के लिए फायदेमंद हैं।
इनमें से, 99/373 (सीडीआरआई कोड) ने रजोनिवृत्ति के बाद के ऑस्टियोपोरोसिस के प्रबंधन के लिए उत्साहवर्धक परिणाम दिये हैं और इसे नैदानिक परीक्षण के लिए डीसीजीआई की मंजूरी भी मिली हुई है। प्राकृतिक संसाधनों जैसे शीशम (डल्बर्जिया सिस्सू) की पत्तियों से तैयार नवीन ओस्टोजेनिक मार्कर के साथ अच्छी ओस्टियोजेनिक (अस्थिजनक) प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया, जिसके कारण रैपिड फ्रैक्चर हीलिंग एजेंट के रूप में इसे स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। इस तकनीक को फार्मेंजा प्राइवेट लिमिटेड को ट्रांसफर कर दिया गया, जहां इसका नाम रीयूनियन है। क्लीनिकर परीक्षण पूरा होने के बाद अब यह औपचारिक रूप से बाजार में उपलब्ध है।
डॉ रितु के इन वैज्ञानिक योगदानों के अलावा उनके नाम प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में 100 से अधिक रिसर्च पेपर प्रकाशित हैं।