बलिया के लाल ने बनाई कोरोना की गेमचेंजर दवा
कोरोना मरीजों के लिए इस तरह की गेमचेंजर दवा बनाने वाले डॉ. अनिल मिश्रा का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया (Balia, Uttar Pradesh) जिले में हुआ था। उन्होंने साल 1984 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से M.Sc. और साल 1988 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से रसायन विज्ञान विभाग से PhD किया। इसके बाद वह फ्रांस के बर्गोग्ने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रोजर गिलार्ड के साथ तीन साल के लिए पोस्टडॉक्टोरल फेलो रहे। फिर वे प्रोफेसर सी एफ मेयर्स के साथ कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भी पोस्टडॉक्टोरल फेलो रहे। डॉक्टर एके मिश्रा 1994 से 1997 तक INSERM, नांतेस, फ्रांस में प्रोफेसर चताल के साथ अनुसंधान वैज्ञानिक भी रहे। इसके बाद साल 1997 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में डॉ. अनिल मिश्रा डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज में शामिल हुए। वह 2002 से 2003 तक जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर और INMAS के प्रमुख भी रहे। डॉ. अनिल मिश्र इस समय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साइक्लोट्रॉन और रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में काम कर रहे हैं। डॉ. अनिल रेडियोमिस्ट्री, न्यूक्लियर केमिस्ट्री और ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में रिसर्च करते हैं। उनकी वर्तमान परियोजना ‘आणविक इमेजिंग जांच का विकास’ है।
दवा ऐसे करती है काम
डॉ. अनिल मिश्रा ने बताया कि 2-डीजी दवा कोरोना का इलाज करने में काफी कारगर है और पाउडर के रूप में पैकेट में उपलब्ध रहेगी। कोरोना संक्रमित मरीजों को इसे पानी में घोलकर पीना होता है। डीआरडीओ के अनुसार 2-डीजी दवा वायरस से संक्रमित मरीज की कोशिका में जमा हो जाती है और उसको और बढ़ने से रोकती है। यानी संक्रमित कोशिकाओं के साथ मिलकर यह दवा उसमें सुरक्षा कवच बना देती है। इससे वायरस उस कोशिका के साथ ही दूसरे हिस्से में भी फैल नहीं पाता। डॉक्टर एके मिश्रा ने बताया कि किसी भी टिशू या वायरस के ग्रोथ के लिए ग्लूकोज़ का होना बहुत जरूरी होता है, लेकिन अगर उसे ग्लूकोज नहीं मिलता तो उसके मरने की उम्मीद बढ़ जाती है। इसी को हमने मिमिक करके ऐसा किया कि ग्लूकोज का एनालॉग बनाया। वायरस इसे ग्लूकोज समझ कर खाने की कोशिश करेगा, लेकिन ये ग्लूकोज नहीं है। इस वजह से इसे खाते ही वायरस की मौत हो जाएगी। यही इस दवाई का बेसिक प्रिंसिपल है।
ऑक्सीजन पर निर्भरता भी होती है कम
डॉ. अनिल मिश्रा के मुताबिक यह दवा लेने के बाद मरीज की ऑक्सीजन पर अतिरिक्त निर्भरता भी बहुत कम हो जाती है। डॉक्टर एके मिश्रा ने बताया कि अगर वायरस को शरीर में ग्लूकोज न मिले तो उसकी वृद्धि रुक जाएगी। उन्होंने बताया कि साल 2020 में ही कोरोना की इस दवा को बनाने का काम शुरू किया गया था। उसी दौरान डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने हैदराबाद में इस दवा की टेस्टिंग की थी। डॉ. अनिल मिश्रा ने बताया कि इस दवा के तीसरे फेज के ट्राएल के अच्छे नतीजे आए हैं। जिसके बाद इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिली है। हम डॉ रेड्डीज के साथ मिलकर ये कोशिश करेंगे कि यह दवा हर जगह और हर नागरिक को मिले। एके मिश्रा ने बताया कि इस दवाई को हर तरह के रोगों से ग्रसित मरीजों को दिया जा सकता है। हल्के लक्षण वाले कोरोना मरीज हो या गंभीर मरीज, सभी को इस दवाई को दी जा सकेगी। बच्चों के इलाज में भी ये दवा कारगर साबित हुई है। उन्होने कहा कि बच्चों के लिए इस दवा की डोज अलग होगी।