Unnao Rape Case में CJI रंजन गोगोई ने लिया संज्ञान, एक हफ्ते में रिपोर्ट पेश करने के दिये आदेश
30 साल बाद हुआ ऐसा लगभग 30 साल पहले 25 जुलाई, 1991 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ही के वीरास्वामी केस (K Veeraswami Case) में किसी भी जांच एजेंसी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) या हाईकोर्ट (High Court) में कार्यरत किसी भी जज के खिलाफ साक्ष्य सीजेआई (CJI) को दिखाए बिना जांच शुरू करने के लिए एफआईआर (FIR) दर्ज करने की अनुमति नहीं दी थी। हाईकोर्ट (High Court) में कार्यरत किसी भी जज के खिलाफ 1991 से पहले किसी भी एजेंसी ने किसी भी मामले में जांच नहीं की थी। तब से यह पहला मामला है, जब सीजेआई (CJI Ranjan Gogoi) ने एक जांच एजेंसी को एक सिटिंग जज के खिलाफ एफआईआर (FIR) दर्ज करने की अनुमति दी है। सीबीआई (CBI) जल्द ही जस्टिस शुक्ला (Justice Shukla) के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगी। जस्टिस शुक्ला (Judge SN Shukla) भ्रष्टाचार निरोधी कानून के तहत गिरफ्तार करने की भी पूरी संभावना है।
जस्टिस शुक्ला का आग्रह हुआ था खारिज दरअसल पिछले महीने सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई (CJI Justice Ranjan Gogoi) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को चिट्ठी लिखकर जस्टिस शुक्ला (Justice Shukla) को हटाने का प्रस्ताव संसद में लाने को कहा था। 19 महीने पहले पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा (Former Chief Justice) ने भी यही सिफारिश की थी जब एक आंतिरक समिति ने जस्टिस शुक्ला (Justice Shukla) को गंभीर न्यायिक कदाचार का दोषी पाया था। पीएम मोदी (PM Modi) को पत्र लिखने से पहले सीजेआई गोगोई (CJI Gogoi) ने न्यायिक कार्य फिर से आवंटित करने का जस्टिस शुक्ला (Justice Shukla) का आग्रह खारिज कर दिया था।
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गठित हुई थी जांच कमेटी उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह (Advocate General Raghavendra Singh) की कदाचार की शिकायत पर जस्टिस एसएन शुक्ला (Judge SN Shukla) के खिलाफ सितंबर 2017 में सीजेआई दीपक मिश्रा (CJI Deepak Mishra) ने एक आंतरिक जांच समिति गठित कर दी थी। इस समिति में मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) की तत्कालीन चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी (Justice Indira Banerjee), सिक्किम हाई कोर्ट (Sikkim High Court) के तत्कालीन चीफ जस्टिस एस के अग्निहोत्री (SK Agnihotri) और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (Madhya Pradesh High Court) के चीफ जस्टिस पीके जयसवाल (CJI PK Jaiswal) शामिल थे। समिति को जांच कर पता करना था कि क्या जस्टिस शुक्ला (Judge Shukla) ने वाकई सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश का उल्लंघन करते हुए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों (Pricate Medical College) में विद्यार्थियों के ऐडमिशन की समयसीमा बढ़ा दी थी।