बिल्हौर थाने में पूर्व एसओ सतीशचन्द्र यादव ने 10 जुलाई 2005 को विकास दुबे, अतुल दुबे, अनुराग दुबे, शिवसिंह यादव और जिलेदार यादव के खिलाफ धारा 147,148,149(बलवा) और 307(जान से मारने का प्रयास) की धाराओं में एफआईआर दर्ज कराई थी। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक पूर्व एसओ पुलिस टीम के साथ नानामऊ तिराहा बिल्हौर के पास वाहन चेकिंग करा रहे थे। उसी दौरान विकास दुबे अपने गुर्गों के साथ वहां पहुंचा। उसने व उसके गुर्गों ने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी। इस मामले में सभी आरोपितों के खिलाफ पुलिस ने नवम्बर 2005 में चार्जशीट भी लगा दी थी। उसके बाद इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कानपुर देहात के यहां ट्रायल शुरू हो गया।
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शस्त्रों के हैं शौकीन तो माउजर, पिस्टल और रिवॉल्वर में जान लीजिए क्या है फर्क कोर्ट ने मांगी मृत्यु आख्या इंस्पेक्टर बिल्हौर धनेश प्रसाद ने बताया कि इस केस में विकास दुबे और अतुल दुबे का नाम हटाने के लिए अर्जी दी थी ताकी बाकी आरोपितों के खिलाफ ट्रायल पूरा हो सके। इंस्पेक्टर के मुताबिक दोनों का नाम हटाने के लिए कोर्ट ने दोनों का मृत्यु आख्या मांगी है। जिसमें दोनों के मृत्यु प्रमाण पत्र कोर्ट में दाखिल करने के आदेश दिए गए हैं। 19 अप्रैल तक कोर्ट में मृत्यु प्रमाण पत्र दाखिल करने के आदेश हुए हैं।
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आखिर उत्तर प्रदेश में किस कानून से चलता है बुल्डोजर, कौन देता है निर्देश ऋचा दुबे ने कहा कब से भाग रही हूं सुनवाई नहीं विकास दुबे का मृत्यु प्रमाण पत्र गलत बना दिया गया था। उसके मृत्यु प्रमाण पत्र में पिता रामकुमार का नाम गलत अंकित कर दिया गया। जिससे उसकी जमीनों के मसले भी अटक गए। विकास की पत्नी ऋचा दुबे कहती है कि शुरुआत में ही यह गलती जानबूझकर की गई थी ताकी उन्हें परेशान किया जा सके। उन्होंने थाने से लेकर आईजी, एडीजी तक सब जगह मृत्यु प्रमाण पत्र सही कराने के लिए चक्कर काटे मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा जो संकट उनके सामने था और कुछ कुछ वैसा ही संकट पुलिस के सामने भी खड़ा हो गया है। बिना मृत्यु प्रमाण पत्र के विकास दुबे का नाम फाइलों से हटाया नहीं जा सकता।