उद्योग भवन मेट्रो स्टेशन से करीब एक किलोमीटर दूर 6 ए कृष्णा मेनन मार्ग। वातावरण में गंभीरता। गेट के पास लगी नेम प्लेट और उस पर अटल जी का नाम। आवास में प्रवेश करने के लिए बढ़ा, तो एक सुरक्षाकर्मी ने रोका। कहा, किससे मिलना है। मैंने कहा-शिव कुमार जी से। जवाब मिला-आपको पास बनवाना पड़ेगा। बिना पूछे, यहां तक बता दिया कि पास कहां से बनेगा। रिसेप्शन में कर्मचारियों ने फिर वही सवाल दोहराया। बिना दूसरा सवाल पूछे पास बनाने की प्रक्रिया पूरी की।
गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ जन्म
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर के गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। स्नातक तक की शिक्षा उन्होंने ग्वालियर से ही पूरी की। इसके बाद राजनीति शास्त्र की डिग्री के कानपुर जाने का मन बनाया, लेकिन पैसों के चलते पिता उन्हें भेजने को तैयार नहीं हुए। डीएबी कॉलेज के प्रोफेसर अनूप सिंह बताते हैं कि जब इसकी जानकारी वहां के तत्कालीन राजा जीवाजीराव सिंधिया को हुई तो उन्होंने वाजपेयी जी को छात्रवृत्ति देने का फैसला कर दिया। प्रोफेसर कुमार बताते हैं, राजा की छात्रवृत्ति लेकर कानपुर आए और डीएवी कॉलेज से लगभग 4 साल तक शिक्षा ग्रहण किया। इस दौरान अटल जी को हर माह 75 रुपए राजा भिजवाते रहे।
जनसंघ से 1951 में जुड़े
अटल जी ने अपने पत्र में आजादी के जश्न 15 अगस्त 1947 का भी जिक्र करते हुए लिखा है कि छात्रावास में जश्न मनाया जा रहा था, जिसमें अधूरी आजादी का दर्द उकेरते हुए कविता सुनाई। कविता सुन समारोह में शामिल आगरा विवि के पूर्व उपकुलपति लाला दीवानचंद ने उन्हें 10 रुपये इनाम दिया था। राजनीति में अटल जी ने पहला कदम अगस्त 1942 में तब रखा जब उन्हें और बड़े भाई प्रेम को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 23 दिन के लिए गिरफ्तार किया गया। डीएवी कॉलेज के दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे और कानपुर में ही 1951 में जन संघ की स्थापना के दौरान संस्थापक सदस्य बन गये।
पहली बार 1955 में लोकसभा चुनाव लड़ा
उन्होंने पहली बार 1955 में लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना देखना पड़ा। 1957 में जन संघ ने उन्हें 3 लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। जिसमें बलरामपुर सीट से जीत मिल सकी। 1957 से 1977 तक (जनता पार्टी की स्थापना तक) जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। 1968 से 1973 तक वे भारतीय जनसंघ के राष्टीय अध्यक्ष पद पर आसीन रहे। 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे। 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने हालांकि यह समय कुछ ही दिनों का रहा। 1998 से 2004 तक फिर प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे।
वह कहते हैं, अटलजी जब राजनीति में आए तो उस समय देश और दुनिया में कई कद्दावर नेता थे। जवाहरलाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया, मार्शल टीटो। उन्होंने संघर्ष कर अपनी पहचान बनाई। उनका कभी कोई विरोधी नहीं रहा। हिंदी को वह वरीयता देते थे। नेहरूजी जब प्रधानमंत्री थे, तब लोक सभा में अटलजी की सीट पीछे थी, लेकिन वह अपनी बात जरूर रखते थे। रक्षा से जुड़े किसी मुद्दे पर अटल जी ने हिंदी में सवाल पूछा, तो नेहरू ने भी स्वेच्छा से हिंदी में ही जवाब दिया। भाजपा की मजबूत नींव अटल जी ने ही रखी।
परमाणु बम का परीक्षण करने वाले पहले पीएम बने
उस दौर में जब देश की सत्ता संभालने वाले ज्यादातर प्रधानमंत्री ने भारत को विश्वशक्ति बनाने के लिए परमाणु बम का परीक्षण करने की बात कर रहे थे, वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने लीक से हटकर पहली बार इस परीक्षण को करने का माद्दा दिखाया। उन्होंने बड़े ही गोपनीय तरीके से इस परीक्षण को अंजाम दिलाया।
ऐसे सांसद जो चार राज्यों से चुने गए
अटल बिहारी वाजपेयी इतने चर्चित और लोकप्रिय थे कि उन्होंने एक अलग कीर्तिमान स्थापित किया। वह पहले ऐसे सांसद बने जिन्हें चार राज्यों यूपी, एमपी, गुजरात और दिल्ली से चुना गया।
मिला भारत रत्न
वर्ष 2015 में उन्हें भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनके साथ-साथ पंडित मदन मोहन मालवीय को भी यह सम्मान दिया गया।
बेस्ट पारलियामेंटेरियन का मिला अवार्ड
अटल बिहारी वायपेयी सिर्फ राजनीति में ही सक्रिय नहीं थे। उन्हें जहां 1992 में पदम विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया वहीं 1994 में उन्हें बेस्ट पारलियामेंटेरियन का अवार्ड मिला।
उनके जन्मदिन पर आज लखनऊ में तमाम आयोजन होंगे। भारतीय जनता पार्टी लखनऊ महानगर इकाई की ओर से कुडिय़ा घाट पर तहरी एवं समरसता भोज का आयोजन होगा। नगर महामंत्री पुष्कर शुक्ला ने बताया कि भोज में उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा , पूर्व सांसद लालजी टंडन, प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन व महिला कल्याण मंत्री डॉ.रीता बहुगुणा जोशी के अलावा कई कार्यकर्ता शामिल होंगे।