तुम को आता है प्यार पर गुस्सा
मुझ को गुस्से पे प्यार आता है।
इस खूबसूरत शेर को लिखने वाले अमीर मीनाई 21 फरवरी, 1828 को पैदा हुए। अमीर मीनाई को 19वीं सदी के सबसे रूमानी शायरों में गिना जाता है। उनकी गजलें पढ़ने वालों के सीधे दिल में उतरती हैं। आज अमीर मीनाई के जन्मदिन पर उनकी जिंदगी की कुछ बातें, साथ में उनके कुछ खूबसूरत शेर और गजलें-
हम मरे जाते हैं तुम कहते हो हाल अच्छा है।
तुझ से मांगूं मैं तुझी को सब कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही इक सवाल अच्छा है।
आंखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
वो अलग बांध के रक्खा है जो माल अच्छा है।
कैसे जुड़ा नाम के साथ मीनाई
अमीर का परिवार लखनऊ में शाह मीना के मकबरे के पास रहता था। इस इलाके में मीना बाजार था। ऐसे में इसे मिनाइयों का मोहल्ला भी कहते थे। इसी वजह से अमीर के नाम के साथ जुड़ा मीनाई।
अमीर मीनाई ने जिस दौर में गजलें कहनी शुरू कीं, वो गालिब, दाग और जौक का दौर था। लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह थे। लखनऊ में अमीर मीनाई की गजलें मशहूर हुईं तो उनकी ये शोहरत नवाब के दरबार तक भी पहुंची।
अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है, दम ले लो
ना छेड़ूंगा मैं, जैसी चाहे तुम मुझ से कसम ले लो। उल्फत में बराबर है वफा हो कि जफा हो,
हर बात में लज़्जत है अगर दिल में मजा हो।
निजी जिंदगी में रसिक मिजाज के मालिक और शायरी के शौकीन वाजिद अली शाह तक अमीर मीनाई के शेर पहुंचे। वाजिद शाह खुद को रोक नहीं सके और 1852 में अमीर मीनाई को बुलाया। वाजिद अली शाह ने 200 रुपए महीना की तनख्वाह पर अपने बेटों की पढ़ाई का जिम्मा उनको दे दिया। ये उस दौर में बहुत बड़ी रकम थी, लेकिन उनका ये अच्छा वक्त 4 साल ही चला।
1857 की क्रान्ति ने सबकुछ छीन लिया
1857 के गदर और अंग्रेजों के अवध पर कब्जे ने अमीर मीनाई का सबकुछ छीन लिया। इसने अमीर मीनाई की नौकरी और घर ही नहीं शहर भी छीन लिया। अमीर लखनऊ से कई शहरों के धक्के खाते हुए रामपुर पहुंचे।
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है। रामपुर के नवाब ने दिया सहारा
1865 में कल्ब अली खां रामपुर के नवाब बने तो अमीर के दिन भी बदले। रामपुर नवाब ने 216 रुपए उनका वजीफा तय किया। साथ ही दरबार से कई दूसरी सुविधाएं भी दी गईं। अमीर मीनाई रामपुर में रहने लगे।
हंस के फरमाते हैं वो देख के हालत मेरी
क्यूं तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी।
किस ढिठाई से वह दिल छीन के कहते हैं ‘अमीर’
वो मेरा घर है रहे जिस में मुहब्बत मेरी।
अमीर मीनाई 4 दशक से ज्यादा रामपुर में रहे और अपनी बेहतरीन शायरी इस दौर में की। अमीर मीनाई ने न सिर्फ प्यार-मुहब्बत से जुड़ी शायरी के लिए नाम कमाया। उनकी लिखीं नातें भी खूब मशहूर हैं। नबी की शान में लिखी उनकी नाते आज भी मजहबी जलसों में अहम जगह पाती हैं। उनकी एक नात है-
आंसू मिरी आंखों में नहीं आए हुए हैं
दरिया तेरी रहमत के ये लहराए हुए हैं।
अल्लाह री हया हश्र में अल्लाह के आगे
हम सब के गुनाहों पे वो शरमाए हुए हैं।
मैंने चमन-ए-खुल्द के फूलों को भी देखा सब आगे तेरे चेहरे के मुरझाए हुए हैं।
भाता नहीं कोई नजर आता नहीं कोई
दिल में वही आंखों में वही छाए हुए हैं।
आखिरी वक्त में पहुंचे हैदराबाद
19वीं सदी के आखिर में हैदराबाद के निजाम का दरबार भी शायरों के कद्रदान के तौर पर पहचाना जा रहा था। मशहूर शायर दाग देहलवी को निजाम ने काफी इनामात दिए थे। ऐसे में अमीर मीनाई ने भी हैदराबाद का रुख किया।
हटाओ आइना उम्मीदवार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं।
1899 में निजाम से न्योता मिला तो अमीर मीनाई हैदराबाद पहुंच गए। अमीर हैदराबाद पहुंचे तो लेकिन उनको ये शहर रास नहीं आया। हैदराबाद जाते ही अमीर बीमार पड़ गए। हैदराबाद में करीब एक साल तक वो बीमारी से जूझते रहे और 1900 में उनकी मौत हो गई। वो खुद ही लिख गए हैं-
हुए नामवर बे-निशां कैसे कैसे
जमीं खा गई आसमां कैसे कैसे।