नाम न छापने की शर्त पर समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि चाचा-भतीजे के बीच रिश्तों पर जमी बर्फ काफी हद तक पिघल चुकी है। मुलायम सिंह यादव भी चाहते हैं कि पुरानी कड़वाहटों को भूलकर अखिलेश और शिवपाल मिलकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को मजबूत करने का काम करें। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो होली के अवसर पर इसकी शुरुआत हो चुकी है, जब सैफई में पूरा मुलायम कुनबा एक मंच पर जुटा था। इस दौरान अखिलेश ने चाचा के पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया था और ग्रुप फोटो भी हुए थे। हाल ही में अखिलेश के कहने पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रामगोविद चौधरी ने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर जसवंतनगर से विधायक शिवपाल यादव की सदस्यता खत्म करने की याचिका वापस ले ली है। याचिका में सपा ने दलबदल कानून के तहत शिवपाल यादव की सदस्यता खत्म करने की अपील की थी।
2017 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थीं। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री, मुलायम सपा अध्यक्ष और शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। अखिलेश ने मुलायम को बिना बताये उनके दो करीबी मंत्रियों गायत्री प्रजापति और राजकिशोर सिंह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। आनन-फानन में शिवपाल के करीबी माने जाने वाले तत्कालीन मुख्य सचिव दीपक सिंघल को भी हटा दिया। मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय के भी फैसले को रद्द कर दिया, जिसके बाद चाचा-भतीजे के बीच वर्चस्व की जंग शुरू हो गई। नाटकीय घटनाक्रम में चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव के साथ मिलकर अखिलेश ने तख्ता पलट करते हुए खुद को सपा अध्यक्ष घोषित कर दिया और मुलायम को पार्टी का राष्ट्रीय संरक्षक बना दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने मर्जी से टिकट बांटे। इटावा के जसवंतनगर से शिवपाल विधायकी जीते, लेकिन सपा को सत्ता गंवानी पड़ी। थोड़े ही दिनों बाद प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का गठन कर लिया। 2019 का लोकसभा चुनाव दोनों दलों ने अलग-अलग लड़ा और दोनों को ही मुंह की खानी पड़ी। अब फिर से चाचा-भतीजे में एका की अटकलें शुरू हो गई हैं।