कोरोना संकट में जब कारखाने, फैक्ट्री बंद हो गए थे, तो हताश होकर मजदूर अपने घर चले गए। कोई गाड़ी न होने पर पैदल ही हजारों किलोमीटर का सफर किया। इनमें महिलाएं भी शामिल थीं। गोद में छोटे बच्चा, हाथ में थैला लेकर मजदूरों ने पैदल ही अपने गृह जनपद तक की यात्रा तय की। उत्तर प्रदेश की अगर बात करें तो झांसी, ललितपुर, महोबा, गोंडा, बहराइच, कुशीनगर, बस्ती, गोरखपुर, संतकबीरनगर और बलिया में सबसे ज्यादा मजदूरों की वापसी हुई थी। धीरे-धीरे अब जब कारोबार पटरी पर आने लगा है, तो मजदूरों ने भी काम पर वापसी शुरू कर दी है। मगर कुछ ऐसे मजदूर अभी भी हैं, तो काम से बहुत दूर हैं। लिहाजा इन्हें बुलाने के लिए सुहाने ऑफर का लालच दिया जा रहा है।
मजदूरों को प्रलोभन कंपनियों में काम करने के लिए मजदूर ना होने के कारण काम शुरू करना मुश्किल दिख रहा है। ऐसे में कंपनियां और फैक्ट्रियां मजदूरों को वापस बुलाने के लिए अलग-अलग प्रलोभन भी दे रहे हैं। कुछ कंपनियां शहरी क्षेत्रों में श्रमिकों को वापस बुलाने के लिए मुफ्त यात्रा टिकट रहने के लिए आवास और भोजन जैसे लाभों का भी वादा कर रही हैं, तो कुछ मजदूरों को स्थायी नौकरी पर रख रही हैं या उनके वेतन में बढ़ोत्तरी कर रही हैं। इसके साथ ही कंपनियां मजदूरों की सुरक्षा व्यवस्था की भी गारंटी कर रही हैं। कंपनियां गांव के प्रमुख से भी बात कर रही हैं कि वह लोगों को काम के लिए शहर भेजें। बदले में कंपनियां मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं और साथ ही उनके आने जाने की व्यवस्था भी खुद ही करने को तैयार है। इसी कारण बहुत से मजदूरों ने वापस लौटने की इच्छा भी जताई है।
ये दिए जा रहे हैं ऑफर – वेतन में की जा रही बढ़ोत्तरी – बोनस का लालच – रहने की अच्छी व्यवस्था – दिवाली पर गिफ्ट ट्रेन-बस भेजी जा रहीं मजदूरों के लिए
यात्री मजदूरों के लिए ट्रेन के साथ-साथ बसें भी भेजी जा रही हैं। झांसी, ललितपुर, दतिया, टीकमगढ़ में भी मजदूरों को लाने के लिए बसें पहुंच रही हैं। 12 हजार को मिल पाया काम
प्रवासियों को रोजगार दिलाने के लिए प्रदेश सरकार ने जिला रोजगार समिति का गठन किया था, लेकिन अब तक 12 हजार प्रवासियों को ही रोजगार दिया जा सका है। इनमें ज्यादातर 10,900 प्रवासियों को मनरेगा में कार्य मिला। 1100 श्रमिकों को भी पीडब्ल्यूडी, जिला पंचायत राज के निर्माण कार्यों में मजदूरी का काम मिल पाया। वहीं, कुछ गरीब तबके के मजदूर अपने गांव में ही दिहाड़ी मजदूरी करके जीवन-यापन कर रहे हैं। मनरेगा से गरीब तबके के प्रवासी श्रमिकों को सबसे ज्यादा रोजगार भी मिल पाया है।