गर्भपात के बाद महिलाओं की देखरेख संबंधी कामकाज से जुड़ी आईपस डेवलपमेंट फाउंडेशन संस्था के मुख्य तकनीकी अधिकारी डॉ. सुशांत बनर्जी की मानें तो यूपी में प्रति 1000 गर्भवात के मामलों में 61 महिलाएं इस सुविधा से वंचित हैं। यानी 15 से 49 साल की करीब 32 लाख महिलाएं जिन्होंने हाल ही अर्बाशन करवाया उन्हें बुनियादी सुविधाएं अस्पतालों से नहीं मिलीं। अध्ययन के मुताबिक केवल 11 फीसदी (3,59,100) महिलाओं का गर्भपात उचित स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ हुआ। इनमें से करीब 65 फीसदी गर्भपात प्राइवेट अस्पतालों में कराया गया।
घरेलू नुस्खे अपनाकर गर्भपात कराने से जाती है जान
महिलाओं में 83 प्रतिशत (लगभग 26 लाख) गर्भपात गोलियों के सेवन और गैर-चिकित्सकीय देखरेख में होते हैं। यानी गोली खाकर गर्भ गिराने की कोशिश की जाती है। अध्ययन रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि 5 फीसदी या 1,62,600 गर्भपात अन्य तरीकों से होते हैं। इनमें महिलाएं अक्सर घरेलू नुस्खे भी अपनाती हैं। जिसमें कई बार उन्हें दूसरी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। या फिर उनकी जान भी चली जाती है। सर्वे में एक बात और निकलकर सामने आई जिसके मुताबिक यूपी के सीएचसी, पीएचसी और जिला अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते भी महिलाओं को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पातीं। यानी गर्भपात कराने के लिए प्रशिक्षित स्टॉफ की बेहद कमी है।
49 प्रतिशत महिलाएं अनचाहा गर्भधारण करती हैं
अमेरिकी संस्था द्वारा किये गए अध्ययन की रिपोर्ट में यूपी में गर्भपात के बाद महिलाओं की देखभाल में सुधार करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है। क्योंकि शहरी क्षेत्रों में तो महिलाओं को गर्भपात के बाद सुविधाएं मिल जाती हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में हालत काफी खराब है। वहां जागरुकता का अभाव अक्सर महिलाओं के लिए जानलेवा साबित हो जाता है। सरकारों को ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन के तरीकों के बारे में लोगों को और ज्यादा जागरूक करने की जरूरत है। क्योंकि जागरुकता के अभाव में अकेले यूपी में 49 फीसदी महिलाएं अनचाहा गर्भ धारण करती हैं और उनमें से 64 फीसदी महिलाओं को गर्भपात कराना पड़ता है।