Breastfeeding: ब्रेस्टफीडिंग की अपनी चुनौतियां है। कई बार यह इतना आसान नहीं होता है। जिसकी वजह से बच्चा भूखा रह सकता है और रोने लगता है। यदि वे बच्चे को फीड कराने में असमर्थ हैं या फिर बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है तो माँ में गिल्ट की भावना पैदा हो सकती है। ऐसे में माँ का संभालना, उनके बच्चों के डॉक्टर और गायनेकोलॉजिस्ट के साथ अपॉइंटमेंट बुक करवाना और उसे साथ लेकर जाना परिवार का फर्ज है।
Physical Changes: प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के दौरान कई हेल्थ प्रोब्लेम्स हो सकती है जिससे दर्द, बेचैनी या फिर कोई और फिजिकल प्रॉब्लम होती है। इन सब के बीच मेन्टल हेल्थ भी जवाब दे जाती है। परिवार और पति के सपोर्ट से एक माँ इन चैलेंजेज से उभर सकती है। घर के सदस्यों को उसकी दवाइयां, हेल्थ सप्लीमेंट्स और खाने-पीना का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
New Role: मां बनने पर हर औरत की पहचान और लाइफस्टाइल दोनों में एक आवश्यक बदलाव आने लगता है। सोशल सर्किल छोटा या बिलकुल ही खत्म हो जाता है। प्रायोरिटी बदल जाती है। इन्ही प्रायोरिटीज को समझने और संभालने में एक माँ को संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में घर की अनुभवी मॉम्स से सलाह लें। या फिर न्यू मॉम्स का कोई सोशल ग्रुप ज्वाइन करें जिससे इस नयी लाइफस्टाइल को समझने में मदद मिले।
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Sleeplessness: हर नवजात शिशु की माँ को अपने बच्चे की स्लीप साइकिल फॉलो करनी पड़ती है। इसके चलते उनकी नींद में कमी आने लगती है। साथ ही बच्चे की देखभाल करने में कठिनाई भी महसूस हो सकती है। नींद की कमी और बच्चे की देखभाल के साथ अपने शारीरिक बदलाव को समझना एक माँ के लिए आसान नहीं होता है। इस साइकिल से एक माँ को आराम देने के लिए, बच्चे के पापा और घर के अन्य सदस्यों को माँ की मदद करनी चाहिए। दिन में या रात को बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी उठा कर माँ को कुछ घंटे नींद लेकर आराम देने की कोशिश करनी चाहिए।
Ask for Help: हर माँ अपने हिसाब से अपने बच्चे की देखरेख करती है। नयी मॉम्स के मन में कई सवाल और डाउट्स आते हैं। यह डाउट्स वे किसी के साथ शेयर नहीं करती हैं, यह सोच कर की परिवार के सदस्य, दोस्त उन्हें जज करेंगे या उन्हें एक अच्छी माँ नहीं समझेंगे। ये सब सोच कर वे किसी से ना तो खुलकर बात करती हैं ना ही कोई तरह की मदद मांगती हैं। ऐसे में फैमिली और फ्रेंड्स को उनके प्रति संवेदनशील होना चाहिए और सामने से उन्हें हेल्प ऑफर करनी चाहिए।