अंडे के छिलकों और पौधों से बना
आज उपयोग होने वाला प्लास्टिक ज्यादातर सिंथेटिक है जिसे कच्चे तेल, गैस और कोयले से बनाया जाता है। लेकिन जापान एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी और टोक्यो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का बनाया यह बायो प्लास्टिक हानिकारक प्लास्टिक का एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है जिसे बायोमास जैसे पौधों, अंडों के छिलके, पक्षियों के पंख यहां तक टकीला उत्पादों से भी बनाया जा सकता है।
घटेगी जींवाश्म ईंधन पर निर्भरता
इस विधि से बनने वाले प्लास्टिक के कारण हमारी जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम हो सकती है। लेकिन इनके इस्मेमाल से पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता है। साथ ही ये आसानी से नष्ट भी हो जाते हैं। इससे लैंडफिल और समुद्रोकं में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण में भी कमी आएगी। हालांकि इस बायो प्लास्टिक में अब भी लचीलापन और परंपरागत प्लास्टिक जैसे दमखम की कमी है। लेकिन यह सामान्य प्लास्टिक की तुलना में उच्च तापमान सहन कर सकता है जो इसका सबसे बड़ा गुण है। टीम ने क्राफ्ट पल्पिंग प्रक्रिया से लकड़ी को लुगदी में बदलकर बायोप्लास्टिक बनाने वाली यह सामग्री प्राप्त की है। यह एएचबीए और एबीए नाम के दो सुगंधित अणु हैं।
ऐसे बनाया नया बायोप्लास्टिक
इन अणुओं को अन्य रसायनों के साथ पुन: संयोजक सूक्ष्मजीवों के साथ जोड़ा गया और पॉलिमर में परिवर्तित किया गया। जो रासायनिक प्रक्रिया के बाद एक थर्मो-प्रतिरोधी फिल्म में बदल गया। जिसे बाद में एक हल्के कार्बनिक प्लास्टिक में बदल दिया गया। यह रिकॉर्ड पर अब तक सबसे ज्यादा उष्मा सहने वाला प्लास्टिक है, जो कि 740 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान सहन करता है। जापान के वैज्ञानिकों की टीम का मानना है कि इस तकनीक को प्लास्टिक के अन्य प्रकारों के साथ मिलाकर उनकी कार्यक्षमता और गुणवत्ता में भी सुधार किया जा सकता है।