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सालाना दो करोड़ रुपए खर्च कर अशिक्षित बच्चों को पढ़ाती हैं कैप्टन इंद्राणी सिंह, डेल के साथ तैयार किया यह साॅफ्टवेयर

लिटरेसी इंडिया नाम की संस्था की संस्थापक कैप्टन इंद्राणी सिंह से पत्रिका बिजनेस से खास बातचीत के कुछ अंश…

Dec 26, 2018 / 08:26 pm

Saurabh Sharma

Indrani singh

सालाना दो करोड़ रुपए खर्च कर अशिक्षित बच्चों को पढ़ाती हैं कैप्टन इंद्राणी सिंह, डेल के साथ तैयार किया यह साॅफ्टवेयर

नर्इ दिल्ली। देश की पहली महिला कमर्शियल पायलट कैप्टन इंद्राणी सिंह किसी पहचान की मोहताज नहीं है। लेकिन मौजूदा समय में वो जो काम कर रही हैं वो हर किसी के बस में भी नहीं। वो अशिक्षित बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं। यह वो बच्चे हैं जो पढ़ार्इ छोड़कर मजदूरी आैर अन्य कामों में जुट जाते हैं। उन्हें पढ़ाने का तरीका भी कोर्इ आम नहीं है। वो उन्हें एेसे साॅफ्टवेयर से पढ़ा रही हैं जो पूरे देश में अनोखा आैर देश में मौजूद सभी एजुकेशन एप्लीकेशन से बिल्कुल अलग हैं। लिटरेसी इंडिया नाम की संस्था की संस्थापक कैप्टन इंद्राणी सिंह पिछले करीब 10 सालों से इस काम में जुटी हुर्इ हैं। एक दशक बीत जाने के दौरान उनके लिए यह रास्ता बिल्कुल भी आसान नहीं रहा। आइए आपको भी बताते हैं कि उन्होंने पत्रिका बिजनेस से खातचीत में क्या कहा…

सवालः इस संस्था को शुरू करने में आपका क्या मोटिव था?
जवाबः जैसा कि आपको संस्था के नाम से ही समझ आ गया होगा कि हम यहां बच्चों को शिक्षित करने का काम करते हैं। यहां पर एेसे बच्चों को पढ़ाया जाता है जो अपनी पढ़ार्इ गरीबी की वजह से छोड़ चुके होते हैं या फिर जिनके माता पिता रुपए ना होने के कारण अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाते हैं। यहां हर उम्र कास बच्चा पढ़ सकता है। किसी में कोर्इ भेद नहीं रखा जाता है।

सवालः इन दस सालों में आपको कर्इ तरह का संघर्ष करना पड़ा होगा, सबसे ज्यादा परेशानी किस चीज के लिए उठानी पड़ी?
जवाबः शुरूआती दिनों में संस्था आैर लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कभी बच्चों को टीचर नहीं मिलते थे, टीचर मिल जाते थे तो बच्चे नहीं होते थे। वहीं दूसरी आेर बच्चों की एज में गैप होने की वजह से टीचर्स को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। उन्हें पढ़ाने में दिककत होती थी। जिसके कारण काफी परेशानी होती थी। लेकिन हमाने इसका एक तरीका खोजा। हमने ‘ज्ञानतंत्र डिजिटल दोस्त’ नाम से एक साॅफ्टवेयर तैयार किया। जिसके बाद चीजे काफी आसान हो गर्इ।

Literacy india

सवालः ‘ज्ञानतंत्र डिजिटल दोस्त’ साॅफ्टवेयर क्या है, इससे बच्चों को कैसे लाभ मिलता है?
जवाबः जब हमें टीचर मिलने में दिक्कत हुर्इ तो हमने डेल साॅफटवेयर कंपनी के साथ मिलकर एेसा साॅफ्टवेयर तैयार किया, जिससे सभी बच्चे उससे आसानी से समझकर पढ़ार्इ कर सके। वास्तव में इसमें छोटी से लेकर बड़ी क्लास सभी के लिए सिलेबस तैयार किया गया है। जिसे पढ़कर बच्चे अासानी से आॅनलाइन ही सवालों का जवाब देकर आगे बढ़ सकते हैं। साॅफ्टवेयर के थ्रू उनसे एेसे सवाल पूछे जाते हैं कि जिससे उन्हें खेल की तरह लगे आैर खेल-खेल में वो आगे भी पढ़ सके।

सवालः मौजूदा समय में बायजूस आैर बाकी एजुकेशनल एप्स मार्केट में मौजूद हैं, उनसे ज्ञानतंत्र कितना अलग हैं?
सवालः यह काफी जरूरी सवाल हैं। वास्तव में मार्केट में जितने भी एप हैं वो वन वे एप हैं। अगर आप उनमें कोर्इ गलती करते हैं तो उसका जवाब आपको दो से तीन दिन बाद पता चलता है। जबकि ज्ञानतंत्र का कंटेंट पूरी तरह से डायनामिक है। इसमें ज्ञानतंत्र आपके लिए टीचर की तरह काम करता है। अगर आप कुछ गलती करते हैं तो आपको तुरंत इसकी जानकारी देता आैर गलती में सुधार करता है। टू वे होने से यह साॅफ्टवेयर बाकी से बेहतर काम करता है। दूसरा यहां पर आपको एक ही साॅफ्टवेयर में सब सब्जेक्ट आैर क्लास का कंटेंट मिल जाता है। बाकी में एेसा नहीं है।

Literacy india classroom

सवालः आपको आपके इस मिशन के लिए आैर कहां से मदद मिल रही है?
जवाबः जैसा कि हमने आपको पहले बताया कि डेल ने इस साॅफ्टवेयर को बनाया है। वहीं होंडा हमारी संस्था का काॅरपोरेट पार्टनर है। वहीं बाकी जगहों से हमें लैपटाॅप आैर कंप्यूटर डोनेशन के रूप में भी मिले हैं। जिससे बच्चों को काफी मदद मिली है।

सवालः आप कितने बच्चों को पढ़ा रहे हैं आैर सालाना कितना खर्चा आ रहा है?
जवाबः मौजूदा समय में हम 44 हजार बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। जिसमें 22 हजार बच्चे अकेले भिवाड़ी में हैं। वहीं अलवर, किशनगढ़ जैसे इलाके में भी काम कर रहे हैं। अगर सालाना खर्चे की बात करें तो 2017-18 में 1.75 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इस बार यह बजट करीब दो करोड़ रुपए जा सकता हैं।

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