2009 में मंजूर हुआ था कर्ज
सीबीआई द्वारा हाल में दर्ज की गई एक प्राथमिकी में खट्टर व उसकी कंपनी को दूसरे अज्ञात लोगों के साथ नामजद किया गया है। एजेंसी ने कहा कि खट्टर मारुति उद्योग लिमिटेड के साथ 1993 से 2007 तक थे और सेवानिवृत्ति से पहले कंपनी में मैनेजिंग डायरेक्टर के तौर पर काम किया। खट्टर के सेवानिवृत्ति के लभभग दो साल के अंतर के बाद खट्टर ने कार्नेशन को लॉन्च किया, जिसके लिए उसने 170 करोड़ का कर्ज लिया, जिसे 2009 में मंजूर किया गया। सीबीआई प्राथमिकी के अनुसार, खट्टर द्वारा लिए गए कर्ज को 2015 में नॉन परफार्मिग एसेट घोषित किया गया।
बैंक अधिकारियों की भी होगी जांच
प्राथमिकी के अनुसार, जिसे बैंक ने केजी सोमानी व कंपनी द्वारा कराया। उसमें कहा गया कि आरोपी कर्जदार ने बैंक की मंजूरी के बिना 455.9 लाख रुपए की राशि के अचल संपत्तियां बेईमानी व धोखाधड़ी से बेच दी, जिस संपत्ति का मूल्य 6,692.48 लाख रुपए था। ये संपत्तियां बैंक के पास सिक्युरिटी के तौर पर थी, लेकिन बिक्री के बाद आरोपी कर्जदार ने विक्रय आय को बैंक के पास जमा नहीं किया। सीबीआई उन बैंक अधिकारियों की भूमिका की भी जांच करेगी, जिन्होंने इस साजिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
तीन गारंटर कंपनियों के नाम भी शामिल
प्राथमिकी में कहा गया, “बैंक ने 17 अक्टूबर, 2019 को अपनी शिकायत में उन पांच आरोपी व्यक्तियों के नामों का उल्लेख किया है जिनमें से तीन कंपनियां गारंटर हैं, जिनका नाम है खट्टर ऑटो इंडिया, कार्नेशन रियल्टी और कार्नेशन इंश्योरेंस ब्रोकिंग कंपनी है। हालांकि, जांच के दौरान गारंटरों के बैंक के साथ धोखाधड़ी करने की बात प्रकाश में नहीं आई, जिससे उनका नाम प्राथमिकी में नहीं है।”