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ललितपुर

औरंगजेब भी डरकर लौट गया था महादेव के इस मंदिर से

महशिवरात्रि पर दो हजार बर्ष पुराने चंदेलकालीन पाली के ऐतिहासिक शिव मंदिर पर अटूट आस्था लेकर शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भगवान की आराधना के लिए श्रद्धालु त्रिमूर्ति पर बेलपत्री जल दूध फल फूल चढ़ाकर करते है। जल प्रपात से शरीर की कई बीमारियां ठीक होने का दावा किया जाता है। विश्व प्रसिद्ध अर्धनारीश्वर भगवान शिव की अद्वतीय त्रिमूर्ति प्रतिमा नहीं है।

ललितपुरMar 01, 2022 / 07:28 pm

Dinesh Mishra

Lord Shiv temple in Lalitpur Uttar Pradesh

Lord Shiv temple in Lalitpur Uttar Pradesh

महाशिवरात्रि पर उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि विश्व में भी धूम धाम से मनाया जा रहा है। वहीं ललितपुर जिले के शिव मंदिर में भक्तों की अपार भीड़ अपनी अटूट आस्था के साथ उमड़ी है। महाशिवरात्रि के साथ साथ सावन के महीने में यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। यह शिव मंदिर आस्था के केंद्र बिंदु के साथ साथ ऐतिहासिक एवं पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
श्रद्धालुओं के अनुसार इस मंदिर की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यहां पर आए हुए श्रद्धालुओं की सच्चे पवित्र ह्रदय से मांगी गई मनोकामनाएं पूर्व होती है। इतना ही नहीं मंदिर के नीचे से एक प्राकृतिक जलप्रपात से निकलता हुआ पानी अपने भक्तों के शारीरिक कष्टों को हरकर निरोगी शरीर देता है। लोग बताते है कि इस जलप्रपात का पानी पीने से यहां क्षेत्रवासियों के साथ-साथ दूर-दूर से आये हुए श्रद्धालुओं की कई शारीरिक बीमारियां अपने आप ठीक हो जाती है।
विंध्य पर्वत की गोद में बसा मंदिर

विंध्याचल पर्वत श्रंखला की गोद में बसे आध्यात्मिक प्राकृतिक पर्यटन तीर्थ स्थल नीलकंठेश्वर धाम की। क्षेत्र की अगाध आस्था का केंद्र बिंदु नीलकंठेश्वर धाम की महिमा निराली है। यह तीर्थ स्थल लगभग 2000 वर्ष पुराना बताया गया है, यह भी बताया गया है इसका अपना एक विशेष महत्त्व है । यह प्राचीन शिव मंदिर चंदेल कालीन है इस मंदिर में भगवान शिव की जो त्रिमूर्ति प्रतिमा बनी हुई है जो पूरे भारतवर्ष में कहीं नहीं है।
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर श्रद्धालुओं ने अगाध श्रद्धा और भक्ति भाव से अर्धनारीश्वर भगवान शिव की त्रिमूर्ति पर जल बेल पत्री फल फूल दूध आदि चढ़ाकर भगवान की आराधना की और श्रद्धालुओं ने आरती उतारकर मुरादें मांगीं। इस मंदिर में इस पावन पर्व पर दूर दूर से श्रद्धालु अगाध श्रद्धा लेकर आते है।

स्थानीय लोग बताते हैं कि यह प्रतिमा यहां पर अपने आप प्रकट हुई थी और इस का ऐतिहासिक महत्व इसलिए है कि इस प्रतिमा का चमत्कार देखकर मुगल शासक औरंगजेब जो मंदिर तोड़ने के लिए आया था, जो यहां से नतमस्तक होकर गया था । यहां के बुजुर्ग लोग बताते है कि यहां के मंदिर के बारे में ऐसा वर्णित कि जब औरंगजेब ने हिंदू आस्था मंदिरों को अपना निशाना बनाया और उन्हें तहस-नहस करने की ठानी । तब वह मंदिरों को तोड़ता हुआ इस नीलकंठेश्वर धाम पर भी आया और यहां चमत्कारिक शिव की प्रतिमा पर उसी खंडित करने के उद्देश्य तलवार से प्रहार किया और गोली चलाई । तब शिव की प्रतिमा से पहले दूध की धार निकली फिर गंगाजल की धारा निकली एवं ओम नमः शिवाय के साथ साथ शंख झालर घंटों की आवाजें आने लगी। तब यह चमत्कार देखकर औरंगजेब भगवान के आगे नतमस्तक होकर लौट गया। यहां पर सैकड़ों सालों से महाशिवरात्रि बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान शिव की बारात बड़े ही उत्साह के साथ धूमधाम से निकाली जाती है। शिवरात्रि के साथ साथ हर सोमबार को यहां भजन कीर्तन चलता रहा है और भंडारा भी होता है।
सड़क से मंदिर तक सीढ़िया

सड़क से मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई है, सीढ़ियां चढ़ते समय ऐसा महसूस होता है कि जैसे मानो हम किसी पहाड़ी पर्यटन स्थल पर आ गए हों, चारों तरफ विंध्याचल पहाड़ी के साथ साथ लगे हुए पेड़ पौधे मन को मोह लेते हैं । मंदिर के नीचे मंदिर पर चढ़ाने के लिए प्रसाद सहजता से उपलब्ध हो जाता है। मंदिर जंगल के रास्ते में पड़ता है इसीलिए यहां सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन द्वारा पुलिस चौकी बनाई गई है जिसमें 3 पुलिसकर्मी तैनात रहते है।
श्रद्धालुओं की ऐसी आस्था है कि मंदिर के नीचे बने झरने में नहाने से शरीर की चर्म रोग दूर हो जाती है, तो वहीं इस झरने का पानी पीने से शरीर के अंदर की कई बीमारियां भी ठीक हो जाती है। झरने का पानी पीने वालों को कभी पेट की बीमारियों से ग्रसित नहीं होना पड़ता यहां पूरे भारतवर्ष से हजारों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं और अपने वाहनों में झरने का पानी भरकर ले जाते हैं जो एक गंगा जल की तरह काम करता है।

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