घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है। हमेशा ध्यान रहे कि शंख को दीपावली, होली,
महाशिवरात्रि ,
नवरात्र, रवि-पुष्य, गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में स्थापित किया जाना चाहिए।
वैज्ञानिक रूप से शंख का महत्व विज्ञान के अनुसार शंख की ध्वनि महत्वपूर्ण होती है, वैज्ञानिकों के अनुसार शंख-ध्वनि से वातावरण का परिष्कार होता है। इसकी ध्वनि के प्रसार-क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है। शंख में थोडा सा चूने का पानी भरकर पीने से कैल्शियम की स्थिति अच्छी हो जाती है। शंख बजाने से ह्रदय रोग और फेफड़ों की बीमारियाँ होने की सम्भावना कम हो जाती है।
इससे वाणी दोष भी समाप्त होता है। शंख की आकृति के आधार पर ये तीन प्रकार के होते हैं – दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। भगवान् विष्णु का शंख दक्षिणावर्ती है और लक्ष्मी जी का वामावर्ती। वामावर्ती शंख अगर घर में स्थापित हो तो धन का बिलकुल अभाव नहीं होता। इसके अलावा
महालक्ष्मी शंख , मोती शंख और गणेश शंख भी पाया जाता है।
कैसे करें शंख का प्रयोग सफ़ेद रंग का शंख ले आयें, इसको
गंगाजल और दूध से धोकर शुद्ध कर लें , इसके बाद गुलाबी वस्त्र में लपेट कर पूजा के स्थान पर रखें। प्रातः और सायं काल पूजा के बाद तीन तीन बार इसको बजाएं। बजाने के बाद इसको धोकर पुनः वहीँ रखें ।
शंख के प्रयोग में सावधानियां रखें शंख को किसी वस्त्र में या किसी आसन पर ही रखें। प्रातःकाल और संध्या काल में ही शंख ध्वनि करें , हर समय शंख न बजाएं। शंख को बजने के बाद धोकर ही रखें, अपना शंख किसी और को न दें और न ही दूसरे का शंख प्रयोग करें।