कोटा. सनातन धर्म में सभी समाज रक्षाबंधन का त्योहार उत्साह से मनाते है, लेकिन आदि गौड़ पालीवाल ब्राह्मण समाज करीब 733 साल से रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाता। इतिहासकारों के अनुसार, पाली मारवाड़ में पालीवाल छठी सदी से रह रहे थे, जो काफी समृद्ध थे।
तत्कालीन दिल्ली के शासक जलालुद्दीन खिलजी ने सन 1291-1292 के लगभग अपनी सेना के साथ पाली को लूटने के लिए आक्रमण किया। युद्ध में हजारों की संख्या में पालीवाल ब्राह्मण शहीद हो गए। जीवित बचे लोगों ने पाली का परित्याग कर दिया। उसी दिन से राजस्थान के अलग – अलग क्षेत्रों में रह रहे हैं। समाज के लोग राखी पर पाली पहुंचकर सामुहिक तर्पण में भागीदारी निभाते हैं। समाजबंधुओं का जत्था रविवार को पाली के लिए रवाना हुआ।
9 मण जनेऊ व 84 मन चूड़ा बावड़ी में डालकर बंद कर दिया था
रक्षाबंधन आवणी पूर्णिमा के दिन ही युद्ध करते हुए हजारों ब्राह्मण शहीद हुए। महिलाएं बहुताधिक संख्या में विधवा हुई। इतिहास के अनुसार, युद्ध के दौरान शहीद हुए ब्राह्मण की करीब 9 मण जनेऊ व विधवाओं के पास हाथी दांत का करीब 84 मन चूड़ा अपवित्र होने से बचाने के लिए पाली में परकोटे की बावड़ी में डालकर बंद कर दिया गया था, जो स्थल वर्तमान पाली शहर में धौला चौतरा के नाम से विख्यात और पूजनीय है।
पालीवाल एकता दिवस मनाते है
पालीवाल ब्राह्मण राखी को पालीवाल एकता दिवस के रूप में मनाते हैं। समाज की ओर से पाली में धौला चौतरा को विकसित किया गया है। राखी पर लोग धौला चौतरा पर जाकर पुष्पांजलि अर्पित कर तालाब पर अपने पूर्वजों की शांति के लिए तर्पण करते हैं।
पालीवाल समाज राखी नहीं मानता
733 साल से पालीवाल समाज राखी नहीं मानता। रक्षाबंधन पर समूचे देश के पालीवाल ब्राह्मण पाली पहुंचकर युद्ध में समाज, धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए जान देने वाले पूर्वकों की आत्मा की शांति के लिए सामूहिक तर्पण करते हैं। हाड़ौती से भी समाजजन पाली जाकर तर्पण करते हैं। – प्रमोद पालीवाल, संरक्षक, हाड़ौती पालीवाल ब्राह्मण हितकारी समिति
रक्षाबंधन को पालीवाल ब्राह्मण समाज एकता दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन धौला चौतरा पर देशभर के पालीवाल समाज के लोग आकर पूर्वजों के बलिदान को याद करते हुए पुष्पांजलि देते हैं। समाज की युवा पीढ़ी को भी समाज के इतिहास व वीरता की गाथा से रूबरू कराया जाता है। – नरेश पालीवाल, अध्यक्ष, हाडौती पालीवाल ब्राह्मण हितकारी समिति