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अधिकतर सरकारी और गैर सरकारी महकमें जल संरक्षण को लेकर गंभीर नहीं हैं। वहीं दूसरी ओर शहर में दादाबाड़ी सीएडी रोड स्थित सिंचाई प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ( water harvesting ) से हर वर्ष छत पर गिरने वाले बरसात के पानी को सहेज कर नजीर पेश कर रहा है। संस्थान न सिर्फ अमृत को एकत्रित कर रहा है, बल्कि गिरते भूजल स्तर को बढ़ाने की दिशा में भी सिस्टम के माध्यम से योगदान दे रहा है। ( Rainwater Harvesting )
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चार वर्ष पूर्व किया था सिस्टम स्थापित
संस्थान के संयुक्त निदेशक एन आर बामनिया ने बताया कि वर्ष 2015 में रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया था। संस्थान के प्रशासनिक, छात्रावास व प्रशिक्षण केन्द्र तीनों भवनों में अलग-अलग सिस्टम स्थापित किए हैं। तीनों की छतों पर गिरने वाले बरसाती जल को शुद्ध कर संग्रहित किया जा रहा है। इसका फायदा यह है कि तीनों भवनों के पास तीन ट्यूबवेलोंं में पानी उपलब्ध है।
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ऐसे मिली थी प्रेरणासंयुक्त निदेशक बामनिया ने बताया कि जयपुर में एक सेमिनार के दौरान डॉ. पीसी जैन के वाटर हार्वेस्टिंग पर उल्लेखनीय कार्य के बारे में पता चला। उन्हें कोटा में एक सेमिनार आयोजित कर बुलाया। उनके व्याख्यान से प्रेरित होकर सिस्टम विकसित किया। उनकी बताई तकनीक से ही सिस्टम के माध्यम से पानी संग्रहित करते हैं। सिस्टम में फिल्टर से गुजरकर पानी छनकर ही भूतल में जाता है। गंदगी आने पर वाल्व के माध्यम से साफ कर लिया जाता है।
बामनिया ने बताया कि सिस्टम पर महज 49 हजार रुपए खर्च आया। इसमें इतना पानी संग्रहित है कि हम चार वर्षों से लगातार ट्यूबवैल के जरिए पानी का उपयोग कर रहे हैं।
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यह जानना जरूरीसिस्टम को स्थापित करने के लिए भूजल स्तर, वर्षा की मात्रा जमीन का क्षेत्र समेत विभिन्न बिंदुओं को देखा जाता है। इसकी अलग-अलग गाइड लाइन है। 300 वर्ग मीटर के भूखंड पर निर्माण करते हैं तो वहां वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम विकसित किया जाना जरूरी है। इसके अलावा नोटिफाइड जमीन पर प्रशासन की अनुमति लेकर ट्यूबवैल लगवाते हैं, वहां भी सिस्टम स्थापित किया जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना के तहत शहर में करीब 48 भवनों में रूफ टॉप रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम व्यवस्था की गई है। एक 300 वर्ग मीटर के भूखंड पर निर्माण के लिए स्वीकृति से पूर्व निगम में राशि जमा होती है, कोई व्यक्तिगत तौर पर बना लेता है तो यह राशि वापस लौटा दी जाती है, कुछ लोगों ने राशि वापस ली भी है।
प्रेमशंकर शर्मा, अधीक्षण अभियंता, नगर निगम
डॉ. विनय भारद्वाज, वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक, जयपुर