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OMG: दिल्ली के बाद अब कोटा की हवा भी जहरीली, पानी में घुल रहे ऐसे हानिकारक तत्व जिससे हड्डियां हो रही टेड़ी

दिल्ली के बाद अब कोटा की आबोहवा में भी जहरीली हो गई। पानी भी इतना दूषित हो गया कि लोगों की हड्डियां तक टेड़ी कर रहा।

कोटाDec 18, 2017 / 07:41 am

​Zuber Khan

Poisonous smoke in kota
कोटा . 30 जुलाई 2012 को उत्तरी भारत में पावर ग्रिड फेल होने पर आधा देश जब अंधेरे में डूबा तो खूब हाहाकार मचा था। 21वीं सदी के भारत की तस्वीर दुनिया भर के अखबारों में छपी, लेकिन कोटा थर्मल पावर प्लांट से उत्तरी ग्रिड को लाइटअप कर इस मुसीबत से देश को उबारने वाला कोटा आज भी अंधेरे में जी रहा है। थर्मल पावर प्लांट सालों से लोगों की सांसों में फ्लोराइड का जहर घोल रहा है, जिसकी जांच के मानक सरकार आज तक तय नहीं कर सकी है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हवा में प्रदूषण जांच के लिए 16 नवम्बर 2009 को नेशनल एंबीएंट एयर क्वालिटी स्टैण्डर्ड जारी किए थे। इसके बाद सामान्यतौर पर हवा में सल्फर-डाई-आक्साइड, नाइट्रोजन-डाई-ऑक्साइड, पार्टीकुलेट मैटर (पीएम 10 और पीएम 2.5), ओजोन, लेड, कार्बनमोनो-डाई-ऑक्साइड, अमोनिया, बेन्जीन, बैन्जोपाइरीन, अर्सेनिक और निकल समेत 12 हानिकारक तत्वों की जांच अनिवार्य कर दी थी। वहीं कोल बेस पावर प्लांटों से उत्सर्जित होने वाले वायु प्रदूषण की जांच के लिए पहले सिर्फ पार्टीकुलेट मैटर की जांच की जाती थी, लेकिन दिसम्बर 2017 से लागू होने वाले रिवाइज्ड एंबीएंट एयर क्वालिटी स्टैण्डर्ड में सल्फर-डाई-ऑक्साइड, ऑक्साइड ऑफ नाइट्रोजन और मर्करी की जांच का प्रावधान भी जोड़ दिया।
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जमीन और पानी भी हो रहा दूषित
डॉ. चौबीसा कहते हैं कि फ्लोराइड की सबसे ज्यादा मात्रा थर्मल से निकले वाली फ्लाई एश में शामिल होती है। फ्लाई एश पर पानी पड़ता है तो वह रिसते हुए जब भूगर्भीय जल स्रोतों में मिलता है तो वहां भी फ्लोराइड बढ़ा देता है। वहीं हवा में तैरती फ्लाई एश जब लोगों की सांसों में घुलती है तो लोग फ्लोराइड के शिकार हो जाते हैं और फ्लोरोसिस बीमारी के शिकार बनते हैं।
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90 किमी के दायरे पर पड़ता है असर
इंडस्ट्रीयल फ्लोरोसिस का असर उस उद्योग में काम करने वालों तक सीमित रहता है, लेकिन नेबरहुड फ्लोरोसिस का असर उद्योग की चिमनियों की ऊंचाई पर निर्भर करता है। थर्मल की चिमनियां 180 मीटर ऊंची हैं। फ्लोराइड का दुष्प्रभाव 90 से 100 किमी दूर तक फैलता है।

इनका कहना
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित शर्मा ने बताया कि सरकार की ओर से घोषित सामान्य या थर्मल प्लांटों के लिए निर्धारित किए वायु प्रदूषण के मानकों में फ्लोराइड उत्सर्जन की जांच शामिल नहीं है। जिन प्लांटों में हाइड्रो सल्फर इस्तेमाल किया जाता है सिर्फ वहीं फ्लोराइड के उत्सर्जन की जांच की जाती है।
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सरकार नहीं मानती फ्लोराइड का उत्सर्जन
चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार ने वायु प्रदूषण की जांच के लिए संशोधित मानकों में भी फ्लोराइड को शामिल नहीं किया। इंटरनेशनल जर्नल फ्लोराइड के रीजनल एडीटर डॉ. शांतिलाल चौबीसा कहते हैं कि आजादी के 70 साल बाद भी सरकार यह मानने को राजी नहीं है कि कोयले को जलाने से फ्लोराइड उत्सर्जित होता है, जबकि शोध के जरिए साबित हो चुका है कि थर्मल पावर प्लांट में जलने वाले एक किलो पत्थर के कोयले से ४० से २९५ मिलीग्राम फ्लोराइड उत्सर्जित होता है।

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