जमीन और पानी भी हो रहा दूषित
डॉ. चौबीसा कहते हैं कि फ्लोराइड की सबसे ज्यादा मात्रा थर्मल से निकले वाली फ्लाई एश में शामिल होती है। फ्लाई एश पर पानी पड़ता है तो वह रिसते हुए जब भूगर्भीय जल स्रोतों में मिलता है तो वहां भी फ्लोराइड बढ़ा देता है। वहीं हवा में तैरती फ्लाई एश जब लोगों की सांसों में घुलती है तो लोग फ्लोराइड के शिकार हो जाते हैं और फ्लोरोसिस बीमारी के शिकार बनते हैं।
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90 किमी के दायरे पर पड़ता है असर
इंडस्ट्रीयल फ्लोरोसिस का असर उस उद्योग में काम करने वालों तक सीमित रहता है, लेकिन नेबरहुड फ्लोरोसिस का असर उद्योग की चिमनियों की ऊंचाई पर निर्भर करता है। थर्मल की चिमनियां 180 मीटर ऊंची हैं। फ्लोराइड का दुष्प्रभाव 90 से 100 किमी दूर तक फैलता है।
इनका कहना
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित शर्मा ने बताया कि सरकार की ओर से घोषित सामान्य या थर्मल प्लांटों के लिए निर्धारित किए वायु प्रदूषण के मानकों में फ्लोराइड उत्सर्जन की जांच शामिल नहीं है। जिन प्लांटों में हाइड्रो सल्फर इस्तेमाल किया जाता है सिर्फ वहीं फ्लोराइड के उत्सर्जन की जांच की जाती है।
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सरकार नहीं मानती फ्लोराइड का उत्सर्जन
चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार ने वायु प्रदूषण की जांच के लिए संशोधित मानकों में भी फ्लोराइड को शामिल नहीं किया। इंटरनेशनल जर्नल फ्लोराइड के रीजनल एडीटर डॉ. शांतिलाल चौबीसा कहते हैं कि आजादी के 70 साल बाद भी सरकार यह मानने को राजी नहीं है कि कोयले को जलाने से फ्लोराइड उत्सर्जित होता है, जबकि शोध के जरिए साबित हो चुका है कि थर्मल पावर प्लांट में जलने वाले एक किलो पत्थर के कोयले से ४० से २९५ मिलीग्राम फ्लोराइड उत्सर्जित होता है।