जेसीआई कोटा एलीगेन्स की लॉकडाउन में ऑनलाइन डांस प्रतियोगिता की निर्णायका अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम करने वाली पद्म श्री से पुरुस्कृत कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबों ने अपनी जीवनी को साझा करते हुए बताया कि राजस्थान के कई हिस्सों में सदियों से बेटी को पैदा होते ही मार देनी की प्रथा का चलन था।
समाज के दकियानूसी रिवाजों के चलते गुलाबो सपेरा को पैदा होते ही उनके घरवालों ने जिंदा दफना दिया था। लेकिन भगवान ने तो कुछ और ही सोच रखा था। गुलाबो की मौसी ने उन्हें जमीन से खोदकर बाहर निकाला और उन्हें नया जीवन दिया। समाज की सोच की भेट चढ़ने जा रही गुलाबो ने बाद में अपने सपेरा समाज के कालबेलिया डांस को देश-विदेश में पहचान दिलाई।
लॉकडाउन के दौरान बच्चों व महिलाओं की प्रतिभा को निखारने के लिए जेसीआई कोटा एलीगेन्स की और से आयोजित डांस प्रतियोगिता का ऑनलाइन निर्णय करने वाली गुलाबों ने बस्ती के बच्चों की प्रतिभा को बढाने पर कहा कि मेरे से जो भी मदद होगी वो करूंगी। जरुरतमंदों की मदद करने का आव्हान किया कहा कि वो स्वयं भी ग़रीब कालबेलिया परिवारों सहित जरुरतमंदो की मदद कर रही है।
पिता ने दिया ‘गुलाबो’ नाम
गुलाबो सपेरा अपने घर में सबसे छोटी थी और अपने पिता की लाडली ।उनका असली नाम धनवंतरी था। वह बहुत गोरी थीं और उनके गालों का रंग गुलाबी हुआ करता था। उनके पिता को अपनी बेटी पर बहुत प्यार आता था और उन्होंने उनका नाम गुलाबो रख दिया और वह अब इसी नाम से जानी जाती हैं।
17 की उम्र में दी पहली इंटरनेशनल प्रस्तुति
1986 में फेस्िटवल ऑफ इंडिया नाम के एक कार्यक्रम का आयोजन वाशिंगटन में किया गया था और इसी दौरे पर पहली बार गुलाबो देश से बाहर गई और कालबेलिया डांस की प्रस्तुति। इस शो के दौरान राजीव गांधी और सोनिया गांधी भी मौजूद रहे। यह वह समय था जब गुलाबो सपेरा के जीवन में एक दुखद घटना भी हुई थी। इस शो के एक दिन पहले ही गुलाबो सपेरा के पिता का निधन हो गया। गुलाबो ने कोटा जे सी के प्रयासों की सरहाना की और कलाकारों को जो मंच दिया उसके लिए सभी की प्रसंशा की ।