ज्यादातर कच्ची बस्तियों से जानकारों के अनुसार अधिकतर गुमशुदा नाबालिग कच्ची बस्तियों के रहने वाले या खानाबदोश परिवारों से हैं। एक जगह से दूरी जगह पर टापरियां बदलने से उनका पता तक नहीं मिल पाता। पुलिस यह भी मानती है कि कुछ बच्चे वापस घर लौट आए होंगे लेकिन उनकी सही जानकारी नहीं होने से भी वे पुलिस रिकॉर्ड में लम्बित हैं।
400 से अधिक लोग लापता गुजरे तीन साल में गुमशुदा नाबालिगों की तलाश के लिए पुलिस की ओर से ऑपरेशन ‘स्माइल’, ‘मुस्कान’ व ‘मिलाप’ चलाए गए। इस दौरान गुमशुदा तलाश के अलावा बालश्रम व भिक्षावृत्ति से बच्चों की मुक्ति का भी कार्य किया गया। राज्य में सर्वाधिक कार्यवाही करने पर कोटा शहर पुलिस को अव्वल रहने का तमगा भी मिला। पुलिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार कोटा शहर से नाबालिग बच्चे ही नहीं महिला-पुरुष भी लापता हैं। इनकी संख्या 420 है। जिनमें210 महिलाएं व 210 ही पुरुष लापता हैं।
बेटा मिला, बेटी गायब 28 वर्षीय संगीता सक्सेना अपनी ससुराल बरेली जाने के लिए दो बच्चों के साथ बनारस रेलवे स्टेशन से ट्रेन में चढ़ी, लेकिन रास्ते में ही जहर खुरानी का शिकार हो गई और बरेली की बजाय वह कोटा जंक्शन पर पहुंच गई। किसी तरह उसके पति लकी को खबर लगी तो वह पत्नी को तलाशते हुए कोटा पहुंच गया। जहां उसे पत्नी संगीता और 5 साल का बेटा अरुण तो मिल गया, लेकिन साढ़े तीन साल की बेटी पूर्णिमा का कहीं कोई पता नहीं चल सका है। मानव तस्करी विरोधी यूनिट के प्रभारी धर्मराज सिंह राणावत कहते हैं कि पिछले वर्ष तक 81 नाबालिग लापता थे। अधिकतर को तलाश किया। मात्र 45 बच्चे शेष थे। इस साल 10 और गुम गए। कुछ के मुम्बई या अन्य शहरों में होने की जानकारी मिली है। शीघ्र दस्तयाब करेंगे।