ज्योतिषाचार्य अमित जैन ने बताया कि अमावस्या तिथि का प्रारंभ 31 जुलाई को सुबह 11.58बजे से होगा, जो 1 अगस्त को प्रात: 8.42 बजे तक रहेगा।
पितृ कार्य अमावस्या 31को रहेगी ओर देवकार्य अमावस्या या हरियाली अमावस्या का पर्व 1 अगस्त को मनाया जाएगा।
इस योग में मां पार्वती शिव जी की पूजा करने से वैसे तो सभी तरह की कामनाएं पूरी होती हैं लेकिन कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है और सुहागन महिलाओं का सुहाग अमर रहता है। जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष, शनि की दशा और पितृ दोष है। उन्हें शिवलिंग पर पंचामृत अवश्य चढ़ाना चाहिए।
इस दिन चीटियों को चीनी मिला हुआ आटा खिलाना शुभ माना जाता है। साथ ही झुला झुलने का भी महत्व है।
इस तिथि पर पितरों के लिए पूजा-पाठ, श्राद्ध-तर्पण किया जाता है। पितरों को चढ़ाने वाले फूल सेवंती, अगस्त, तुलसी, भृंगराज, शमी, आंवला, श्वेत-पुष्प आदि के पौधे लगा सकते हैं। इनका रोपण करें और आगामी श्राद्धपक्ष में पितरों को अर्पित करें। इससे घर-परिवार में सुख बढ़ सकता है। पौधों के रूप में पूर्वजों की याद भी बनी रहेगी।
जलवायु में परिवर्तन का कारक बुध ग्रह है। अमावस्या पर सुबह 9.42 बजे से बुध ग्रह मार्गी होगा। इससे अच्छी बारिश की संभावना बनेगी। मान्यता है कि बुध अन्य ग्रहों की ऊर्जा को संरक्षित कर जलवायु में परिवर्तन करता है। वर्तमान में गुरु वक्री चल रहा है। वक्री रहते हुए कर्क राशि स्थित सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध और शुक्र से नवम-पंचम दृष्टि संबंध बनेगा। इसका असर भी मौसम पर दिखाई देगा।