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सामाजिक संदेश दे रहे गणपति गणेश उत्सव में सिर्फ भजन कीर्तन का ही आनन्द क्यों, समाज को संदेश देने का भी कार्य क्यों न किया जाए। यही संकल्प एक कर्मयोगी के मन में उठा। उसने अपने साथियों से चर्चा कर उन्हें जोड़ा और हो गई शुरुआत एक ऐसे गणेश मंडल की जो गणपति उत्सव में ही सामाजिक अलख का संदेश भी देने लगा। 16 साल पहले खास उद्देश्य के साथ उत्सव मानाने का शुरू हुआ सिलसिला लगातार जारी है।
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16 साल से हो रहा आयोजन कर्मयोगी सेवा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष राजाराम कर्मयोगी बताते हैं कि वर्ष 2000 में उनके मंडल ने गणेश प्रतिमा स्थापित की थी। इसके बाद से वे लगातार प्रतिमाओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहे हैं। उनका मानना है कि रासायनिक रंगों से जलीय जीवों को नुकसान होता है। इसे ध्यान में रखते हुए विशेष प्रतिमा बनाना शुरू किया। पहली प्रतिमा के माध्यम से जीवों की रक्षा के लिए जीओ और जीने दो का संदेश दिया। फिर अगले पांच वर्षों तक इसी तरह से भगवान महावीर की प्रतिमा से अलग अलग संदेश दिए।
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घर-घर से किया आटा इकट्ठा 2006के बाद पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हुई अलग-अलग प्रतिमाएं बनाई जाने लगी। वर्ष 2007 में घर-घर से आटा एकत्र कर51 किलो आटे से निर्मित गणपति प्रतिमा बनवाई। इसे काफी सराहना मिली। गुड़ के गणेश, नीम के गणेश, नवगृह समिधा गणेश, रोटी गणेश, गोबर से निर्मित गणेश आदि प्रतिमाओं को अब तक तैयार कर चुके हैं।
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इस साल बनाए आयुर्वेदिक गणेश इस साल संस्थान की ओर से हल्दी और मुल्तानी मिट्टी को मिलाकर भगवान गणेश की प्रतिमा तैयार की गई है। प्रतिमा को संस्थान के सब्जीमण्डी स्थित कार्यालय पर स्थापित किया गया है। इसे मंगलवार को अनन्त चतुर्दशी के मुख्य जुलूस में शामिल कर विसर्जित किया जाएगा। आयुर्वेद गणेश की प्रतिमा को तैयार करने में 8 किलो हल्दी तथा 8 किलो मुल्तानी मिट्टी काम आई। प्रतिमा जलीय जीवों का उपचार करते हुए दिखती है। राजाराम कर्मयोगी बताते हैं कि हल्दी एन्टी सेप्टिक और मुल्तानी मिट्टी प्राकृतिक गुणों से भरपूर होती है। जो त्वचा को स्वस्थ रखने का कार्य करती है। वहीं हल्दी भी एक ताकतवर एन्टी ऑक्सीडेंट है। ऐसे में आयुर्वेद गणेश की प्रतिमा हल्दी और मुल्तानी मिट्टी के औषधीय गुणों के प्रति लोगों को जागरूक करने का कार्य करेगी। इसलिए इस बार इन चीजों का इस्तेमाल किया गया।