चौथी बार पूरे तबाह हो गए मलबे के इसी ढ़ेर में एक घर सब्जी विक्रेता सत्यनारायण प्रजापति का भी था। वह बताते हैं कि मकान बनाने के बाद से वे तीसरी बार त्रासदी का शिकार हुए हैं। इससे पहले 2006, 2013 और 2017 में भी उनका मकान ढ़ह चुका था पर कभी हिम्मत नहीं हारी। लेकिन इस मर्तबा पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं। इस बार उन्हें घर से एक थैला उठाने तक की मोहलत नहीं मिली। नतीजतन, पूरी जमा पूजी, जेवर और पाई-पाई कर जोड़ा सारा सामान बह गया। हालात यह हैं कि फेरी लगाने के लिए मंडी से सब्जी खरीदने तक के पैसे नहीं बचे।
फिर से दस्तावेज कैसे बनेंगे राजस्थान पत्रिका की टीम ने जब बाढ़ पीडि़तों से मुलाकात कर उनसे बात की तो पीडि़तों ने बताया कि बस्ती का दौरा करने आए पटवारी और कुछ अन्य अधिकारियों ने उनसे पहचान के दस्तावेज मांगे। लोगों ने बताया कि हमारा तो सबकुछ पानी में बह गया। अब ऐसे में कागज कहां से बनवा कर लाएं। वह पूरे वक्त यही पूछते रहे कि यह कागज कैसे और कहां से बनेंगे। क्या सरकार जब तक पीडि़तों के नाम और उनके हुए नुकसान का मुआवजा तय कर रही होगी, तब तक क्या यह कागज तैयार हो जाएंगे और यदि नहीं हुए तो क्या हमें इस तबाही की एवज में सरकारी मदद नहीं मिलेगी।
आश्रय स्थलों में भीड़