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जयपुर

OPD के समय के बाद ट्रोमा यूनिट में नहीं किया जा रहा इलाज

दोपहर में यदि आपकी या आपके परिवार में किसी भी व्यक्ति की अचानक तबीयत बिगड़ जाती है और आप उसे उपचार के लिए जिला चिकित्सालय की ट्रोमा यूनिट में ले जा रहे हैं तो सावधान रहिए।

जयपुरFeb 19, 2016 / 12:22 pm

दोपहर में यदि आपकी या आपके परिवार में किसी भी व्यक्ति की अचानक तबीयत बिगड़ जाती है और आप उसे उपचार के लिए जिला चिकित्सालय की ट्रोमा यूनिट में ले जा रहे हैं तो सावधान रहिए। वहां आपको उपचार मिल जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। ट्रोमा यूनिट में तैनात चिकित्सक बीमार मरीजों को आपात मरीज नहीं मानते हैं। उन्होंने स्वयं के स्तर पर ही इमरजेंसी मरीजों की गाइड लाइन तैयार कर रखी है। ऐसे में आपको उपचार के लिए दर-दर की ठोकरे खानी पड़ सकती है।

ऐसा ही कुछ बुधवार देर शाम को हुआ मेहंदीपुर बालाजी निवासी कविता पत्नी लोकेश शर्मा के साथ। उसके पति ने बताया कि कविता गत 5 दिनों से बुखार से पीडि़त है। स्थानीय अस्पताल में उसका उपचार कराया जा रहा है। बुधवार देर शाम को उसकी अचानक ज्यादा तबीयत बिगड़ गई। ऐसे में उसे जिला चिकित्सालय की ट्रोमा यूनिट में उपचार के लिए लाया गया। वहां पर्ची बनवाने के बाद जब ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक डॉ. प्रमोद मीना को दिखाने के लिए गए तो वह उखड़ गए।

उन्होंने कहा कि आउट डोर समय में आया करो। यह इमरजेंसी यूनिट है, यहां सामान्य मरीजों का उपचार नहीं किया जाता है। इस पर उन्होंने अचानक तबीयत बिगडऩे की कही तो चिकित्सक ने उसे बहाना बता दिया। ऐसे वह पत्नी को बिना दिखाए ही वहां से फिजीशियन डॉ. आर. के. मीना के घर चला गया, लेकिन वो भी किसी शादी समारोह में गए थे। इसके बाद उन्होंने पीएमओ को फोन किया तो उन्होंने भी बाहर होने की जानकारी दी तथा डॉ. डी. एन. शर्मा को दिखाने के लिए कहा। इसके बाद वह डॉ. डी. एन. शर्मा के घर गए तो उनके भी किसी शादी में जाने की जानकारी मिली। ऐसे में उन्हें फोन किया तो उन्होंने डॉ. ज्योति मीना से उपचार कराने के लिए कहा। इसके बाद उसने डॉ. ज्योति मीना के पास जाकर उपचार कराया। इस प्रक्रिया के कारण उसकी पत्नी करीब एक घंटे तक तेज बुखार में तपती रही।

ट्रोमा यूनिट की हालत खराब
पीएमओ की ओर से ट्रोमा यूनिट में तैनात चिकित्सक व नर्सिंगकर्मियों को आपात मरीज को प्राथमिकता देने के निर्देश के कारण चिकित्सकों ने स्वयं के स्तर पर ही आपात मरीज की गाइड लाइन तैयार कर ली है। वर्तमान में चिकित्सक व नर्सिंगकर्मी आउट डोर समय के बाद दुर्घटना में घायल, आग व करंट से झुलसे, विषाक्त सेवन व अन्य घायलों के अलावा तेज बुखार, उल्टी-दस्त, तेज दर्द या अन्य मरीजों का उपचार करने से कतराते हैं। इसके अलावा यूनिट में आउट डोर समय के बाद ड्रेसिंग व इंजेक्शन भी नहीं लगाए जाते हैं। इससे मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ती है।

ये है ट्रोमा यूनिट के नियम

नियमानुसार अस्पताल के आउट डोर समय में ट्रोमा यूनिट में सामान्य मरीजों का उपचार नहीं किया जाता है। सामान्य मरीजों को आउट डोर में बैठने वाले चिकित्सकों से ही उपचार कराना होता है। आउट डोर समय के बाद गम्भीर बीमार मरीज, घायल, झुलसे सहित अन्य गम्भीर मरीजों का भी ट्रोमा यूनिट में उपचार किया जाना चाहिए, लेकिन ट्रोमा यूनिट स्टॉफ मात्र घायल, झुलसे, विषाक्त सेवन आदि लोगों का ही उपचार करते हैं। खास बात यह है कि घायलों का उपचार भी प्राथमिक तौर पर नर्सिंगकर्मी ही करते हैं।

करते हैं उपचार

ट्रोमा यूनिट में आने वाले सभी मरीजों का उपचार किया जाता है। बुधवार को उपचार नहीं करने के सम्बन्ध में लगाए गए आरोप निराधार है। -डॉ.प्रमोद मीना, जिला चिकित्सालय
करना चाहिए उपचार
गम्भीर बीमार मरीज का ट्रोमा यूनिट में भी उपचार किया जाता है। मैं अवकाश पर था। मामले की जांच कराई जाएगी।
डॉ. महेश शर्मा, पीएमओ, जिला चिकित्सालय दौसा

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