जिसमें हो दुनिया बदलने का माद्दा वही है असली कविता…
‘रौद्र’ में बदल गया ‘वीर’ रस वीर या ओज रस की कविताओं में काफी बदलाव आ गया है। बड़ा यह कि अब ‘ओज’ का स्थान ‘रौद्र’ ने ले लिया है। गुस्सा है, पीड़ा है जो मंच से बोलती है। इसे कविता की गिरावट भी कह सकते हैं। यह कहना है। कवि सम्मेलन में ही शिकरत करने आए ओज रस के ख्यातनाम कवि विनीत चौहान का। उन्होंने भी ‘पत्रिका’ से साहित्य जगत के पड़ाव साझा किए। वे पीड़ा के साथ कहते हैं, अब कविताओं में साहित्य को नहीं मनोरंजन को ढूंढा जा रहा है, रचनाकार, कवि भी वही लिख रहा है जो लोगों को रास आ रहा है।
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वक्त के साथ बदली कविता कविता का रूप ‘सत्यम शिवम् सुंदरम’ जैसा होना चाहिए लेकिन वक्त के साथ कविताएं बदल गई हैं। कारण दिनभर की ऊब के बाद व्यक्ति मनोरंजन के कुछ पल चाहता है, वह इन कविताओं में मिल जाता है। कवि विनीत का मानना है कि जब तक देश में भ्रष्टाचार, आतंकवाद रहेगा और नेता रहेंगे, इसी तरह की कविताओं का दौर रहेगा। लेकिन वे नसीहत भरे अंदाज में कहते हैं कि कविता का अपना मर्म और कवि का धर्म होता है, इसे कवि समझे। कविता जब मूकाभिनय व नाटक बनती है तो दर्द होता है।
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जिसने चंबल पार की समझो तर गया… चौहान ने बताया कि उनका कोटा से गहरा नाता है। यहां के श्रोता कवियों की परीक्षा लेते हैं जो सफल हो जाता है, वह तर जाता है। जिसने चंबल पार कर ली, समझो सब कुछ पार कर लिया।
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न जाने कहां खो गए रस देवास से आए कवि शशिकांत ने भी कुछ पल ‘पत्रिका’ को दिए। आरटीडीसी की होटल में कवि सम्मेलन की तैयारी के दौरान संक्षिप्त बातचीत में शशिकांत यादव ने कहा कि जैसे हिन्दी का सरलीकरण हो रहा है, वैसे ही कविताओं का सरलीकरण हो रहा है। कविता वही है जो सीधे सपाट शब्दों में श्रोताओं पर छाप छोड़ सके।