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BIG News: कोटा की राख बन गई सोना, मोदी सरकार ने लगा दी कीमत, पढि़ए खास खबर

कोयले से बिजली बनाने के बाद ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाली राख (Fly ash) का जादू देश में ऐसा चला कि केंद्र सरकार ने इसकी कीमत लगा दी है।

कोटाMay 07, 2019 / 02:25 pm

​Zuber Khan

costly price of Fly ash

BIG News: कोटा की राख बन गई सोना, मोदी सरकार ने लगा दी कीमत, पढि़ए खास खबर

कोटा. कोयले से बिजली बनाने के बाद ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाली राख फ्लाइएश ( Fly ash ) का जादू देश में ऐसा चला कि केंद्र सरकार ने इसकी कीमत तक तय कर दी है। अब kota thermal power plant से निकलने वाली राख मुफ्त में नहीं मिलेगी। अभी तक मुफ्त में राख बांटने के नाम पर थर्मल पावर प्लांट वितरण का हिसाब नहीं रखते थे, लेकिन पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय ने राख की कीमत तय कर दी है। इसके बाद स्टॉक से लेकर वितरण और वसूली का पूरा लेखा-जोखा बहीखातों में दर्ज करना होगा।
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मंत्रालय ने फ्लाइएश की लूट खत्म करने के लिए यह रास्ता खोज निकाला है। कोयले से बिजली बनाने के बाद राख (फ्लाइएश) पर्यावरण के लिए मुसीबत बन चुकी थी। इससे निपटने के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय ने 14 सितंबर 1999 को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 में संशोधन कर निर्माण सामग्री में फ्लाइएश के इस्तेमाल को अनिवार्य बना दिया। इतना ही नहीं थर्मल प्लांटों के 300 किमी तक के दायरे में स्थापित ईंट भट्टों, फ्लाइएश आधारित उद्योगों और सड़कों के भराव के लिए ड्राई फ्लाइएश का मुफ्त वितरण करने के आदेश जारी किए थे।
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शुरू हुई लूट
मुफ्त वितरण और अनिवार्य इस्तेमाल की अधिसूचना जारी होने के बाद थर्मल पॉवर प्लाटों को फ्लाइएश आधारित उद्योगों का पंजीकरण कर उनकी जरूरतों के मुताबिक राख आवंटित करनी थी, लेकिन तब तक सालों से एश डाइक में खुलेआम पड़ी लाखों टन फ्लाइएश की कीमत लोगों को समझ आने लगी और उन्होंने प्लांट प्रबंधन की मिलीभगत से न सिर्फ एश डाइकों पर कब्जे शुरू किए, बल्कि अपनी शर्तों और कीमतों के मुताबिक वितरण भी करने लग गए।

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हिसाब तक नहीं रख सके
कब्जेदारों के आगे प्रबंधन के नतमस्तक होने का नतीजा यह निकला कि दो दशक बीत जाने के बाद भी कोटा थर्मल समेत राजस्थान के किसी भी थर्मल पॉवर प्लांट के पास 300 किमी के दायरे में संचालित फ्लाइएश आधारित उद्योगों और उन्हें वितरित की गई राख का हिसाब तक नहीं है। रीको पर्यावरण इंडस्ट्रीयल एसोसिएशन के संरक्षक राजेद्र सिंह बताते हैं कि थर्मल पॉवर प्लांट प्रबंधन कब्जेदारों के इस कदर चंगुल में फंस गए कि फ्लाइएश आधारित किस उद्योग को कितनी राख वितरित की गई इसका हिसाब रखना तो दूर वर्ष 2006 तक हर महीने कुल कितनी राख बांटी, इस तक का हिसाब नहीं रख सके। वर्ष 2007 के बाद मासिक वितरण का लेखा-जोखा रखा जाने लगा, लेकिन उद्योगों का हिसाब फिर भी नहीं लगाया जा सका।
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अब कसेगी लगाम
खुलेआम चल रही फ्लाइएश की लूट की खबरें एनजीटी और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तक जा पहुंची। मंत्रालय ने मॉनीटरिंग के लिए मोबाइल एप लांच किया, लेकिन वह भी कारगर साबित नहीं हुआ तो राख की लूट को वित्तीय अपराध बनाने के लिए अब इसकी कीमत तय करने का फैसला लिया। मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम में संसोधन के प्रारूप की अधिसूचना जारी कर दी है। जिसके मुताबिक थर्मल पावर प्लांट ड्राइ ईएसपी फ्लाइएश अब सिर्फ ईंट भट्टा और फ्लाइएश आधारित उद्योगों के मालिकों और भवन निर्माण से जुड़ी संस्थाओं को ही बांट सकेंगे। इनका लेखाजोखा रखा जा सके इसके लिए फ्लाइएश लेने के लिए एक रुपए प्रति टन के हिसाब से भुगतान करना होगा। रीको पर्यावरण इंडस्ट्रीयल एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय शर्मा बताते हैं कि यह संशोधन मील का पत्थर साबित होगा। क्योंकि इसके बाद सिर्फ वैध उपयोगकर्ताओं को ही फ्लाइएश दी जा सकेगी।

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