विदेशी से बेहतर नस्ल है देसी गोवंश चिन्मयानंद ने कहा कि यह कुदरत का करिश्मा ही है कि भारत में गिर, थारपारकर, साहीवाल आदि नस्ल के गोवंश का पालन हो रहा है। कई सालों पहले देसी नस्ल की गायों को विदेशी ले गए। क्रॉस ब्रिड कराकर एचएफ, हॉलीस्टन आदि नस्ल तैयार की। इससे दूध उत्पादन क्षमता तो बढ़ गई, लेकिन गुणवत्ता कमजोर हो गई। उन्हीं नस्लों को भारत में लाया गया तो यहां के लोगों ने देसी की अपेक्षा विदेशी गायों की दूध उत्पादन अधिक होने पर उसे स्वीकार कर लिया।
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अब समझ रहे हैं लोग सीमन बैंक संचालक सुरज्ञान गुप्ता ने बताया कि देसी गोवंश के पालन, प्रबंधन पर अब लोग जागरूक होने लगे हैं। १९९० के बाद से एकदम से कृषि कार्य में मशीनरी का अंधाधुंध उपयोग होने लगा। किसानों की पशुओं पर निर्भरता खत्म होने लगी तो उन्होंने गोवंश पालना कम किया। जो मवेशी उनके पास थे, उन्हें लावारिस छोडऩा शुरू किया। अब लोग दुबारा से गोवंश पालन को जागरूक होने लगे हैं। प्रदेश में कई गोशालाओं में नस्ल सुधार किया जा रहा है। शेखावाटी, मारवाड़, वागड़ में गिर, थारपारकर, साहीवाल आदि गायों के सीमन का उपयोग किया जा रहा है। धीरे-धीरे पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश में भी कोटा से सीमन की मांग बढऩे लगी है।