href="https://www.patrika.com/kota-news/aadhar-card-is-mandatory-for-admission-in-right-to-education-1-1873730/" target="_blank" rel="noopener">मुफ्त में शिक्षा चाहिए तो पहले आधार बनवाइए
मुकाबले में उतरे सिर्फ सात लोग कोटा दशहरा मेले में रात आठ बजे से मूंछ प्रतियोगिता आयोजित की गई। मूंछों को ताव देते 7 प्रतिभागी मंच पर पहुंचे। किसी ने लंबाई तो किसी ने रोबिली मूछें प्रदर्शित की। मूछों के रख-रखाव, लंबाई व बनावट को href="https://www.patrika.com/topic/meditation/" target="_blank" rel="noopener">ध्यान में रखकर विजेता प्रतिभागियों का चयन किया गया। इसमें रंगबाड़ी निवासी और दूध विक्रेता संघ के अध्यक्ष नंदकिशोर खटाणा प्रथम, संतोषी नगर के धनराज प्रजापति द्वितीय व कैथून के रामरतन शर्मा तृतीय स्थान पर रहे।
शौक ने बनाया मूछों का बादशाह नंदकिशोर खटाणा बताते हैं कि जवानी के साथ मूछों को ताव देने का शौक भी विरासत में मिला। परिवार में सभी लोगों की लंबी और रौबीली मूछें देखकर उन्हें भी इन्हें अपने चेहरे पर जगह दे दी, लेकिन इन मूछों को मेंटेन करने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है। मूछों के बाल मजबूत और घने-काले रहें इसलिए वह हर रोज 250 ग्राम नारियल के तेल से इनकी घंटों मालिश करते हैं।
मूछों के कारण सहनी पड़ी थी शर्मिंदगी जिन मूछों ने आज नंदकिशोर खटाणा को इज्जत और शौहरत बख्सी है उन मूछों की वजह से उन्हें शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ती थी। नंदकिशोर बताते हैं कि वह कोटा में इंट्रूमेंटेशन लिमिटेज (आईएल) में नौकरी करते थे, लेकिन उनकी रौबीली मूछें देखकर आईएल के अफसर खासे जलते थे। आला अधिकारी जब निरीक्षण को आते तो वह उनकी ताव दी हुई ऊंची उठी मूछों को नीचे करवा देते थे। कई बार तो उन्होंने ऐसा कर लिया, लेकिन बाद में जब बात हद से ज्यादा गुजरने लगी तो नंदकिशोर ने मूछों के लिए नौकरी तक छोड़ दी।
नंदकिशोर की मूछों ने बदलवा दिए प्रतियोगिता के नियम नंदकिशोर की मूछें हाड़ौती में सबसे ज्यादा रौबीली मूछें हैं। कोटा के दशहरा मेले में हर साल मूंछ प्रतियोगिता होती है। पिछले साल जब नंदकिशोर ने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया तो उन्होंने मूछों की लंबाई नापने के तरीके पर आपत्ति जताई। नदंकिशोर का कहना था कि आयोजक दाढ़ी के जरिए बढ़ाई गई बालों की लंबाई को मूंछ की लंबाई नहीं मान सकते। उनकी आपत्ति के चलते इस बार मूंछ प्रतियोगिता के नियम बदले और सिर्फ होठों के ऊपर उगे बालों की लंबाई के आधार पर ही मूंछों की लंबाई का मूल्यांकन शुरू हुआ। इसीलिए तो कहते हैं मूछें हों तो नंदकिशोर जैसी।