मप्र का पहला ऐसा मंदिर हैं जहां सूर्य के उत्तरायण होते ही पूर्ण किरणें मंदिर के 15 फिट नीचे बने गर्भगृह तक पहुंचती है। कुंदा तट पर बना 225 पुराना नवग्रह मंदिर शहर की पहचान है। जल्द ही इस प्राचीनतम पौराणिक व ज्योतिष महत्व वाले मंदिर की तस्वीर बदलने वाली है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मंदिर परिसर को कॉरिडोर में तब्दील करने का निर्णय लिया है। इसके बाद यह मंदिर देशभर में अपनी अलग पहचान स्थापित करेगा। जिला प्रशासन को इसका प्लान तैयार करने का जिम्मा दिया है। सीएम की घोषणा से सनातनी समाज ने खुशी जताई है। पुजारी लोकेश द. जागीरदार ने बताया मंदिर की स्थापना व रचना 225 साल पहले उनके वंशज व पूर्वज कर्नाटक के शेषप्पा सुखावधानी वैरागकर ने प्राचीन ज्योतिष के सिद्धांतों अनुसार की थी। उनकी छठी पीढ़ी के रूप में जागीरदार परिवार यहां की व्यवस्थाएं संभाल रहा है।
पंडित जागीरदार ने बताया शेषप्पा देशाटन के लिए दक्षिण भारत आए और भ्रमण करते हुए इस स्थान पर पहुंचे। यहां रात्रि विश्राम किया। अनके अनुसार माता बगलामुखी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर उक्त स्थान के नदी तट पर सरस्वती कुंड व बगलामुखी स्थान व सिद्ध शांति मंत्र के आधार पर मंदिर का निर्माण किया।
तीर्थ स्थान : मंदिर के पास नदी तट पर सरसवती कुंड, विष्णु कुंड, सूर्य कुंड, चंद्र कुंड, शिव कुंड है। इसके चलते इसकी गिनती तीर्थ स्थानों में आती है।
नवग्रह मेला : यहां वर्ष 1878 से नवग्रह महाराज की जतरा (मेला) लगती आ रही है। तब आकार छोटा था अब विशाल स्तर पर मेला लगता है।
पंचक्रोशी यात्रा : क्षेत्र की सुख-शांति, समृद्धि के लिए पोष कृष्ण एकादशी से पौष कृ़ष्ण अमावस्या तक पांच दिनी नवग्रह पंचक्रोशी पदयात्रा निकलती है।
मंदिर के तीन शिखर : त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक है। मंदिर में नवग्रह की अधिष्ठात्री माता बगलामुखी स्थापित होने से पीताम्बरा ग्रहशांति पीठ कहलाता है।मंदिर में प्रवेश करते समय सात सीढ़िया हैं, जो सात वार का प्रतीक है। इसके बाद ब्रह्मा विष्णु स्वरूप के रूप में मां सरस्वती, श्रीराम और पंचमुखी महादेव के दर्शन होते हैं। गर्भगृह में जाने के लिए जहां 12 सीढ़िया है जो 12 महीने की प्रतीक हैं। गर्भगृह में नवग्रह का दर्शन होता है। गर्भग्रह में सूर्य की मूर्ति बीच में विराजित है। मूर्ति के आसपास अन्य ग्रहों की मूर्तिया हैं। मकर संक्रांति पर मंदिर में विशेष पूजन और अनुष्ठान के साथ ही श्रद्धालुओं द्वारा तिल और गुड़ का भोग लगाया जाता है। मंदिर परिसर में ही कई श्रद्धालुओं द्वारा भगवान सत्यनारायण की कथा कराते हैं।
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कॉरिडोर तैयार होगा तो मिलेंगे नए आयाम
मंदिर के जीणोद्धार और यहां कॉरिडोर तैयार होगा। इसकी शुरुआत वर्ष 2023 में होगी। जिस हिसाब से यह परिकल्पना तैयार हुई है यदि वह धरातल पर उतरती है तो मंदिर की प्रसिद्धि को मप्र ही नहीं, देशभर में नए आयाम मिलेंगे।