अंतिम इच्छा पूरी हुई, लेकिन एक रह गई अधूरी
किशोर कुमार अक्सर कहा करते थे कि मेरे मरने के बाद अंतिम संस्कार मेरे जन्म स्थान खंडवा में किया जाए। उनकी अंतिम इच्छा जरूर पुरी हुई। मुंबई में निधन हुआ, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए खंडवा लाया गया। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उनके एक इच्छा अधूरी भी रह गई। उनकी इच्छा थी कि वे मालवा की संस्कृति में बसने की। खंडवा के लोगों के बीच रहने की। पौहे-जलेबी खाने की।
4 अगस्त को इस महान गायक किशोर कुमार का जन्म दिन है। खंडवा में उनका बंगला था गांगुली सदन जिसे स्मारक बनाने की बात चली लेकिन अब वो बेच दिया गया। देखें उनके बंगले के भीतर का अंतिम VIDEO…।
एक नजर
-किशोर कुमार का असली नाम आभास कुमार गांगुली।
-खंडवा के गांगुली निवास में हुआ था किशोर का जन्म। यह बंगला आज भी है।
-बंगले में वह पलंग भी है जिस पर उनका जन्म हुआ था। इसके अलावा वे तमाम चीजें हैं जिनके साथ किशोर कुमार बचपन में खेला करते थे।
-किशोर कुमार ने 13 अक्टूबर को 1987 में अंतिम सांस ली थी।
-वे कभी बगैर फीस लिए गाना नहीं गाते थे।
-दही-बड़े खाने के लिए कभी भी खंडवा आ जाते थे।
-अटपटी बातों के चटपटे जवाब देते थे। नाम पूछने पर बताते थे रशोकि रमाकु।
एक फिल्म में फ्री में गाया था गाना
किशोर के किस्सों के बारे में बताने वाले लोग कहते हैं कि किशोर कभी भी फ्री में गाना नहीं गाते थे। इसके लिए वे मशहूर भी थे। लेकिन, एक फिल्म के लिए उन्होंने कोई फीस नहीं ली थी। यह वाकया बहुत कम लोग जानते कि फिल्मकार सत्यजीत रे की बांग्ला शाहकार चारूलता के लिए 1964 में उन्होंने गाने के एवज में बतौर मेहनताना एक पाई तक नहीं ली थी।
पोहे-जलेबी खाने खंडवा आते थे
मायानगरी मुंबई में किशोर रहने लगे थे, लेकिन उनका मन हमेशा खंडवा में ही रहता था। जब भी मन होता था वे दही बड़े, पोहो-जलेबी और दूध-जलेबी खाने के लिए खंडवा चले आते थे।
खंडहर पड़ा था खंडवा का बंगला
खंडवा वाले किशोर दा का बंगला इतना जर्जर हो चुका है कि कभी-भी भरभराकर गिर सकता है। देखरेख न होने के कारण किशोर दा का यह जन्म स्थान खुद मरणासन्न स्थिति में पहुंच गया था। कुछ समय पहले ही इसे बेच दिया गया।
बंगले को म्यूजिम बनाए MP सरकार
किशोर के फैंस इस बंगले को स्मारक या संग्रहालय बना देना चाहते थे, लेकिन यह बंगला अब बिक गया है। यह बंगला जिले के ही सबसे बड़े व्यापारी अभय जैन ने खरीदा।
नम आखों से किया था विदा
13 अक्टूबर 1987 को किशोर विदा हुए तो उनके अंतिम संस्कार के दौरान हर चौराहे पर उन्हीं के गीतों के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई थी। यह गीत सुनकर सभी संगीत प्रेमियों की आंखें नम हो गई थीं। इस दिन पूरा शहर उनकी अंतिम यात्रा में आंसु बहा रहा था।
किशोर की अंतिम यात्रा में बजाए गए थे ये गीत
तेरा साथ है कितना प्यारा, कम लगता है जीवन सारातेरे मिलन की लगन में हमे,आना पड़ेगा दुनिया में दुबारा -जिंदगी को बहोत प्यार हम ने किया
मौत से भी मोहब्बत निभाएंगे हम
रोते-रोते जमाने में आए मगर
हंसते-हंसते जमाने से जाएंगे हम
जाएंगे पर किधर, है किसे ये खबर
कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं