CG News: स्कूल में बच्चे हो रहे परेशान
CG News: अधिकतर विद्यार्थियों को दूर दृष्टिदोष की समस्या है। इन बच्चों को ज्यादा दूर की चीजें स्पष्ट दिखाई नहीं देती। यह गंभीर समस्या है, जो लगातार बढ़ती जा रही है। 11 से 14 वर्ष की कम उम्र में ही यदि आंखों में इस तरह की समस्या होने लगी, तो आगे चलकर यह और भी गंभीर हो सकता है। अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यदि सभी शासकीय स्कूल में बच्चों की जांच की जाए तो दृष्टिदोष से पीड़ित कितने बच्चे होंगे।
खानपान में बच्चों को पर्याप्त पोषक आहार नहीं मिलने के कारण
बच्चे दृष्टिदोष के शिकार हो रहे हैं। हालत यह है कि 100 में तीन बच्चे दृष्टिदोष मतलब आंखों में कमजोरी से पीड़ित है। हर साल बच्चे इससे पीड़ित मिल रहे हैं। यह आंकड़े काफी चिंताजनक हैं।
कवर्धा. स्कूल में बच्चों के आंखों की जांच की गई।
दृष्टिदोष के कारण
छात्र-छात्राओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ब्लैक बोर्ड पर लिखे वाक्य व अंकों को समझने में परेशानी होती है। दृष्टिदोष से ग्रसित बच्चे अंकों को गलत बता देते हैं, जिसके कारण कक्षा में उन्हें शर्मिंदा होना पड़ता है। शिक्षक द्वारा पूछे जाने पर असमंजस्स की स्थिति में बच्चे कुछ भी बोल नहीं पाते।
कम उम्र में गंभीर समस्या
विशेषज्ञों के अनुसार कम उम्र में आंखों की कमजोरी का प्रमुख कारण खानपान में पर्याप्त पोषक तत्व की कमी है। वहीं यह वंशानुगत भी होता है। वहीं संतुलित आहार न मिलना, प्रदूषण और केमिकलयुक्त आहार के कारण ही कम उम्र में ही दृष्टिदोष की समस्या सामने आने लगी है। इसके चलते ही
विद्यालयों में बच्चों की जांच की जा रही है। छठवीं से आठवीं तक की उम्र में इसे रोका जा सकता है। इसके चलते ही पूर्व माध्यमिक के विद्यार्थियों की जांच की जाती है।
बचाव के लिए उपाय जरूरी
आंखों की कमजोरी दूर करने के लिए खानपान में विशेष देने की आवश्यकता है। डॉक्टर के अनुसार पत्तेदार सब्जियां और पीले फल खाना चाहिए। पर्याप्त उजाले में ही पढ़ाई और पढ़ाई के दौरान आंखों को कुछ देर आराम देना जरूरी है। वहीं डॉक्टर से जांच कराकर उनकी सलाह लेकर ही दवाई को उपयोग करना चाहिए। समय रहते पर नियंत्रण आवश्यक है। चश्मा पहनना आवश्यक
शासकीय स्कूल में जांच के दौरान दृष्टिदोष से पीड़ित बच्चों को
स्वास्थ्य विभाग द्वारा चश्मा दिया जाता है। इस शिक्षासत्र के दौरान 624 बच्चों को चश्मा वितरित किया जा चुका है। हर वर्ष बच्चों को चश्मा बांटा जाता है लेकिन गिनती के बच्चे ही इसका उपयोग करते हैं। केवल चश्मा ही आंखों की कमजोरी को बढ़ने से रोक सकता है अन्यथा यह बढ़ते चला जाएगा।
मध्याह्न भोजन में पौष्टिकता की कमी
शासकीय प्राथमिक व पूर्व माध्यमिक स्कूल में मध्याह्न भोजन संचालित है लेकिन केवल बच्चों के भेट भरने तक ही यह सीमित है, पौष्टिकता तो दूर की बात है। मध्याह्न भोजन से कही अधिक पौष्टिक भोजन तो घर में ही उपलब्ध रहता। स्कूल में चावल, दाल और
मौसम में सबसे सस्ती बिकने वाली सब्जी बनाई जाती है। दाल में अधिक पानी होने की वजह से उसकी पौष्टिकता न के बराबर मिलती है। इसके चलते ही तो स्कूल में ऐसे भी बच्चे होते हैं जो घर से टिफिन लेकर पहुंचते हैं क्योंकि उनके पालकों को बच्चों को पौष्टिक भोजन भी देना है।