नवरात्री में मां के दर्शन के लिए दिन भर मेले सा नजारा मंदिर में दिखता है। मां शीतला को पूर्वांचल की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है। यह है सिद्ध पीठ मां शीतला का मंदिर। यही पर देवी सती का दाहिना कर (पंजा) गिरा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने यज्ञ किया और अपनी बेटी सती व उनके पति भगवान शंकर को नहीं बुलाया। इसे अपमान समझ देवी सती यज्ञ स्थल पहुंची और हवन कुंड में कूद कर जान दे दिया। जब इस बात की जानकारी भागन शंकर को हुई तब वह सती के शरीर को लेकर पागलों की तरह विचरण करने लगे। इस पर विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के अंगो को कटना शुरू किया। जहां जहां सती का अंग गिरा वह स्थान सिद्ध पीठ बना। शीतला धाम मंदिर मी कुंड के अन्दर आज भी देवी सती का कर बना हुआ है।
यहां से हर समय जल धारा निकलती रहती है। कुंड में स्थित कर की भक्त गण पूजा करते है। कुंड को दूध व जल से भरवाने पर लोगो की मन की मुरादे पूरी होती है। मां शीतला को पुत्र प्रदान करने वाली देवी के रूप मे भी जाना जाता है। शीतला धाम में दर्शन करने वालों का तो साल भर मेला लगा रहता है लेकिन नवरात्री के दिनों में यहाँ विशेष भीड़ उमड़ती है। शीतला मां के मनोहारी रूप का दर्शन पाकर भक्त अपने आप को धन्य समझते है। मां के दर्शन के लिए भक्तों को काफी समय तक लाइन में खड़े रहना पड़ता है। घंटों लाइन में लगे रहने के बाद मां के दर्शन कर भक्तों की सारी थकान दूर हो जाती है। भक्तों का मानना है की किसीभी शुभ काम को करने से पहले मां शीतला का आशीर्वाद लेने से वह पूर्ण हो जाता है।
गंगा किनारे स्थापित मां शीतला के मंदिर मे देश के कोने कोने दे भक्त गण पहुंचते है। माता के भक्तों को किसी तरह की दिक्कत न हो इसके लिए जिला प्रशासन व्यापक तैयारियां करता है। भारी संख्या मे पुलिस बल लगाया जाता है। इसके अलावा मंदिर व्यवस्थापक से जुड़े स्थानीय लोग भी भक्तों को दिक्कत न इसका विशेष ध्यान रखते हैं। मां के दरबार पहुंचने वाले भक्त गणों का मानना है कि यहां से वह कभी खाली हाथ नहीं लौटते हैं, माता रानी उनकी झोली हमेशा भरती है।
By- Shiv Nandan Sahu