बिलहरी में एक संग्रहालय बनाने की मांग फिर उठी है। जबलपुर चैप्टर के संयोजक डॉ. संजय मेहरोत्रा के पास पुरातत्वविदों और संरक्षण वास्तुकार और अन्य विषयों के विशेषज्ञों की एक विशेषज्ञ टीम है। बहोरीबन्द विधानसभा अन्र्तगत ग्राम बिलहरी कलचुरी शासन काल का मूर्तिकला एवं स्थापत्य का बहुमूल्य खजाना रहा है। रायबहादुर डॉ. हीरालाल एवं बालचंद जैन जैसे मध्य प्रांत में पुरातत्व के पितामह की जड़ें बिलहरी एवं रीठी की मिट्टी से जुड़ी हैं। संग्रहालय की स्थापना कर इन पुरखों के योगदान को याद किया जा सकता है। यहां से 30 कि. मी दूर तिगवां ग्राम में गुप्त कालीन प्राचीन कंकाली मंदिर, यहां से 5 किमी दूर बहोरीबंद में जैन तीर्थकर भगवान शांतिनाथ की 16 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा, ग्राम के किनारे सिंदुरसी की पहाड़ी में चट्टानों में उत्कीर्ण 4 गुप्त कालीन प्रतिमाएं, कुछ दूर स्थित रूपनाथ में शंकरजी का मंदिर एवं तीन सदी पूर्व सम्राट अशोक द्वारा चट्टान में उकेरा कराया गया संदेश है, जिन्हे देखने पर्यटक निरंतर आते रहते हैं।
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- कलचुरी काल में बिलहरी मूर्ति शिल्प, शिक्षा, धर्म एवं व्यापार का उन्नत केंद्र रहा है। अपने ऐतिहासिक महत्व को लेकर यह देश प्रदेश में पहचाना जाता है।
- पुरातत्व विभाग जबलपुर सर्किल के सुपरिटेंडेंट शिवाकांत बाजपेई के मतानुसार बिलहरी में उपलब्ध पुरा संपदा, भारतीय पुरातत्व एवं इतिहास के लिए एक खजाना है।
- बिलहरी नगर तारण पंथ के प्रवर्तक संत तारण तरण की जन्मभूमि है, यहां संतश्री का विशाल चैत्यालय एवं दिगंबर जैन समाज के भव्य मंदिर स्थित हैं, जहां दूर दूर के लोगों का आना बना रहता है। प्रतिवर्ष बड़े मेले लगते हैं।
-बिलहरी के चारों तरफ कटनी जिला के अन्य महत्वपूर्ण पर्यटन केंद्र जैसे सोमनाथ मंदिर बडग़ांव, विष्णु वाराह कारीतलाई, किला एवं शारदा मंदिर विजयराघवगढ़, भौगोलिक केंद्र बिंदु, करौंदी, विरासन माता सिलौड़ी आदि स्थित हैं। जिनकी एक सफल श्रृंखला स्वयं बन सकेगी। - बिलहरी में कामकंदला का रंगमन्च भारतीय रंगमंच का प्राचीनतम् उदाहरण है, इसके अतिरिक्त रूपनाथ के पास ककरेहटा में उत्खनन के दौरान प्राप्त मिट्टी के बर्तन पुरातत्व में विशेष स्थान हैद्ध
- बिलहरी में उपलब्ध समस्त पुरा संपदा इस क्षेत्र की गौरवशाली विरासत है, जिसमें इस क्षेत्र की प्राचीन कला, संस्कृति, धर्म, लोक व्यवहार का इतिहास सांस ले रहा है, इसका उचित संरक्षण अनिवार्य है। स्थानीय जन जन सामान्य, भावी पीढ़ी इस इतिहास से परिचित हो सकें, इसलिए संग्रहालय स्थापित कर इसका संवर्धन किया जाना भी आवश्यक है।
जिले के पुरातन वैभव की चमक जबलपुर, भोपाल, नागपुर से लेकर विदेशों तक में है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरीटेज (इंटेक) से जुड़े और कटनी निवासी राजेन्द्र सिंह ठाकुर के अनुसार जिले में खुदाई में मिलीं कई प्राचीन प्रतिमाओं को जबलपुर, भोपाल, नागपुर, कोलकाता के पुरातत्व संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है। रायपुर के पुरातत्व संग्रहालय की तो शोभा ही कटनी की प्राचीन धरोहरें बढ़ा रही है। छत्तीसगढ़ के इस पुरातत्व संग्रहालय में आधी से ज्यादा प्राचीन प्रतिमाएं कटनी जिले से ले जाकर रखी गई है। जिले की बेशकीमती विरासत का हिस्सा रही बेजोड़ वास्तुशिल्प वाली कुछ दुर्लभ प्रतिमाएं विदेशों तक में चमक बिखेर रही है।
- 600 से ज्यादा प्राचीन प्रतिमाएं कारीतलाई में
- 450 से ज्यादा दुर्लभ प्रतिमाएं बिलहरी में है
- 300 के लगभग प्रतिमाएं बडग़ांव क्षेत्र में है
- 300 के करीब प्राचीन प्रतिमाएं तिगवां में है
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जिले में कलचुरी काल के दौरान के कई अनूठे कलाशिल्प के अवशेष मौजूद है। 10वीं और 11वीं सदी की कई दुर्लभ प्रतिमाएं बिलहरी में खुदाई के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मिले है। कारीतलाई में 493 ईस्वी के पुरा अवशेष हैं। बडग़ांव और तिगवां में भी अति प्राचीन संपदा के अवशेषों का खजाना है। प्राचीन विरासत की झलक के निशान उमरियापान में भी मिलते है। बहोरीबंद के नजदीक रुपनाथ धाम में ईस्वी 232 पूर्व लिखे गए सम्राट अशोक के संदेश वाला शिलालेख है। इन्हें संरक्षित और सुरक्षित करने की जिम्मेदारों की लापरवाही प्राचीन विरासतों को संवारने में बाधा बनी हुई है।
जिले की प्रचुर पुरातन संपदा को सहेजने में जिम्मेदार का रवैया सुस्त है। संभागायुक्त से लेकर एएसआई की मंशा प्राचीन प्रतिमाओं को एक जगह संरक्षित करके रखने के लिए संग्रहालय बनाने की है। इसके लिए बिलहरी क्षेत्र में तहसीलदार को जमीन चिन्हित करने के लिए कहा गया है। लेकिन संभागायुक्त की मंशा के निर्देश के बावजूद संबधित तहसीलदार और अन्य अधिकारी संग्रहालय से संबधित कामकाज को लेकर ढुलमुल रवैया बनाए हुए है। इससे पुरातत्व महत्व की संपदाओं को संरक्षित करके प्रदर्शित करने और पर्यटन सुविधा को विस्तार की कवायद ढीली पड़ गई है।