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गजब है सिस्टम: यह बेपरवाही दावों की खोल रही पोल

Blood component separation unit is not operational in Katni

कटनीSep 24, 2024 / 09:29 pm

balmeek pandey

Blood component separation unit is not operational in Katni

Blood component separation unit is not operational in Katni

जनप्रतिनिधि हों या अफसर, जिले में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा का दावा करते हैं, तो यह सिर्फ जनता के साथ बेमानी है…। जिला अस्पताल में कमोवेश हर स्वास्थ सुविधा का बुरा हाल है। जांच से लेकर इलाज तक बेपरवाही हावी है। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो साल से जिला अस्पताल में बल्ड सेपरेशन यूनिट शुरू नहीं हो पाई और जिम्मेदार हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं…।

कटनी. लगभग 1 करोड़ रुपए की लागत से लाई गई ब्लड कंपोनेंट सेप्रेशन यूनिट की मशीनें कटनी जिला अस्पताल में दस महीने से शोपीस बनी हुई हैं। एक तो दो साल से पड़ी हुई है7 इन मशीनों के बावजूद, लाइसेंसिंग की जटिल प्रक्रिया और प्रशासनिक अनदेखी के चलते जिले के मरीजों को इस अत्याधुनिक सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। अस्पताल प्रबंधन ने कई बार प्रयास के दावे किए, लेकिन वे धरातल पर खोखले साबित हो रहे हैं। भोपाल और दिल्ली की लाइसेंसिंग प्रक्रिया पूरी न हो पाने की वजह से यह यूनिट शुरू नहीं हो पाई है। जिसका दंश सैकड़ों मरीज भुगत रहे हैं।
इलाज हो रहा प्रभावित
जिला अस्पताल में लगभग 30 लाख रुपए की एफ्रासिस मशीन और जनवरी माह में आई 70 लाख की मशीनरी पिछले कई महीनों से उपयोग में नहीं लाई जा सकी हैं। इन मशीनों का उपयोग ब्लड कंपोनेंट सेप्रेशन यूनिट के तहत खून से अलग-अलग घटकों जैसे पीआरबीसी, प्लाज्मा, प्लेटलेट्स और क्रायो को अलग करने के लिए होना था। यह यूनिट शुरू होने से खून देने वाले एक डोनर का खून चार अलग-अलग मरीजों के काम आ सकता है, जिससे थैलेसीमिया, डेंगू, बर्न केस, एनीमिया, सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को काफी राहत मिल सकती थी। वर्तमान में मरीजों को जबलपुर और अन्य बड़े शहरों में इलाज के लिए जाना पड़ रहा है।
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लाइसेंस प्रक्रिया में अड़चनें
ब्लड कंपोनेंट सेप्रेशन यूनिट को शुरू करने के लिए इंदौर स्थित लाइसेंसिंग एजेंसी एडिस्को से लाइसेंस लेना जरूरी है, लेकिन दस्तावेजों की कमी और निर्माण में खामियों का हवाला देकर एजेंसी बार-बार लाइसेंस जारी नहीं कर रही थी। फिर भोपाल से लाइसेंस की प्रक्रिया कराई गई, लेकिन अब दिल्ली से प्रक्रिया अटकी है। प्रशासन ने हर बार आवश्यक सुधार किए, लेकिन अब तक लाइसेंस जारी नहीं हो सका है। स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की बेपरवाही के कारण मरीजों को जरूरी सेवाओं से वंचित रहना पड़ रहा है।
10 नई मशीनें जनवरी में आईं, पड़ी हैं बिना उपयोग
स्वास्थ्य विभाग ने जनवरी माह में अस्पताल को ब्लड कंपोनेंट सेंटर के लिए 10 से अधिक नई मशीनें उपलब्ध कराई थीं, जिनमें कई महंगे और महत्वपूर्ण उपकरण शामिल हैं। इन मशीनों की कुल कीमत लगभग 70 लाख रुपए है। चार प्रकार के अलग-अलग ब्लड स्टोरेज के लिए रेफ्रिजरेटर भी आए हैं, लेकिन लाइसेंस के अभाव में ये सभी मशीनें इस्तेमाल में नहीं लाई जा सकी हैं।
यूनिट से होंगे कई फायदे
इस यूनिट के शुरू होने से जिले के मरीजों को कई लाभ होंगे। अभी एक डोनर से मिला खून सिर्फ एक मरीज के काम आता है, लेकिन कंपोनेंट यूनिट के जरिए यह खून चार मरीजों के लिए उपयोगी हो सकेगा। प्लाज्मा, प्लेटलेट्स, पीआरबीसी और क्रायो को अलग करने की सुविधा मिलने से थैलेसीमिया, डेंगू, बर्न केस, मलेरिया, एनीमिया और प्लेटलेट्स की कमी वाले मरीजों का बेहतर इलाज संभव होगा। यूनिट शुरू होने से मरीजों को अब अन्य शहरों का रुख नहीं करना पड़ेगा, जिससे समय और पैसे दोनों की बचत होगी।

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सांसद निधि से आई मशीन भी अनुपयोगी
राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा द्वारा दो साल पहले 30 लाख रुपए की लागत से एफ्रासिस मशीन अस्पताल को दी गई थी, जो अभी तक उपयोग में नहीं लाई जा सकी है। इस मशीन से ब्लड कंपोनेंट निकालने के लिए लाइव डोनर की जरूरत होती है और प्रक्रिया में लगभग डेढ़ घंटे का समय लगता है। इसके अलावा, एक किट की लागत 5 हजार रुपए होती है, जो सिर्फ एक या दो मरीज के लिए ही काम आती है। बजट की कमी के चलते यह मशीन भी फिलहाल अनुपयोगी है।
जिला प्रशासन की निगरानी पर सवाल
कई महीने से चल रही इस समस्या का समाधान नहीं निकलने से मरीजों और उनके परिजनों में नाराजगी है। जिला अस्पताल प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग लाइसेंस प्रक्रिया के जारी होने का हवाला देते आ रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन की ओर से इस मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

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युवा कांग्रेस अध्यक्ष ने लिखा केंद्रीय मंत्री को पत्र
युवा कांग्रेस अध्यक्ष अंशु मिश्रा ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर समस्या बताई है। कहा कि लगभग 2 साल पूर्व समाजसेवी संस्थाओं एवं जनता की मांग पर राज्य सभा सदस्य विवेक तनखा द्वारा सांसद निधि से 27 लाख 50 हजार की लागत से प्लाज्मा मशीन स्वीकृत कर जिला अस्पताल को 11 दिसंबर 2022 को सौंपी थी, लगभग दो साल पूरे हो जाने के बाद भी सेंटर चालू नहीं हुआ। कहा कि आम जनता को थैलीसीमिया एवं अन्य रक्त संबंधी बीमारियों के लिए जबलपुर की दौड़ लगानी पड़ती है, जिससे जनता में भारी आक्रोश व्याप्त है। जिला युवा कांग्रेस अध्यक्ष ने केंद्रीय स्वस्थ मंत्री जेपी नड्डा को पत्र लिखकर पूरे मामले की विस्तृत जानकारी दी है। साथ ही मुख्यमंत्री, स्वास्थ मंत्री, क्षेत्रीय सांसद, क्षेत्रीय विधायक एवं कलेक्टर को भी मामले पर संज्ञान लेने के लिए पत्र प्रेषित किया है। अंशु ने बताया कि जनहित में जल्द कार्यवाही ना होने पर भाजपा सरकार के खिलाफ जिला अस्पताल प्रांगण में प्रदर्शन किया जाएगा।
वर्जन
भोपाल से दिल्ली लाइसेंस की प्रक्रिया जा चुकी है। दिल्ली से लाइसेंस आना शेष है, ऐसा भोपाल के अधिकारी कह रहे हैं। कई माह से लाइसेंस का इंतजार कर रहे हैं। लाइसेंस आने के बाद ही यूनिट चालू हो पाएगी।
डॉ. यशवंत वर्मा, सिविल सर्जन।

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