गंभीर नदी के किनारे बसे 5 हजार के आबादी के चांदन गांव से अकबरपुर, नौरंगाबाद भी जुड़े हैं। इन गांवों से निकले वीर जवान आजाद हिंद फौज से लेकर कारगिल युद्ध तक में देश की रक्षा में डटे रहे। चांदनगांव व श्रीमहावीरजी कस्बे के बीच में बने शहीद स्मारक पर एक नहीं तीन- तीन शहीदों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। चांदनगांव के युवाओं के लिए सेना में जाने का बचपन से ही जुनून होता है। वे अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी से ज्यादा सेना और सुरक्षा बलों में भर्ती होने को तरजीह देते हैं।
इसके चलते किशोर अवस्था से ही वे सेना में भर्ती की तैयारी में जुट जाते हैं। प्रत्येक दिन सुबह 4 बजे गांव की सड़कों पर इन युवाओं को दौड़ लगाते देखा जा सकता है। चांदनगांव में कमोबेश हर हर घर में कोई न कोई सदस्य सैनिक है या सेना से सेवानिवृत है। अनेक ऐसे परिवार हैं, जिनमें पीढ़ी दर पीढ़ी सदस्य सेना में रहे हैं। ऐसे में सैन्य परिवारों में जन्मे नवजात में देश की सरहद पर जाने वाले भावी सैनिक का अक्स नजर आता है। इसलिए चांदनगांव क्षेत्र सैनिक गढ़नेे वाली माटी के गांव के नाम से ख्यात है।
कर्नल का बेटा ब्रिगेडियर
जिले से सेना में कर्नल के ओहदे पर पहुंचे चांदनगांव निवासी रूपचंद शर्मा के पुत्र सौभाग्य स्वरूप शर्मा पिता के नक्शेेकदम पर सेना में अधिकारी बने। सौभाग्य स्वरूप वर्तमान में थल सेना में ब्रिगेडियर के पद पर तैनात हैं। उनके परिवार के दर्जनों अन्य सदस्य भी सेना में हैं।
युद्ध से लेकर सैन्य ऑपरेशनों में रहे भागीदार
चांदनगांव क्षेत्र के सैनिकों की देश की रक्षा के लिए युद्ध और सैन्य ऑपरेशनों में हिस्सा लिया है। यहां के पूर्व सैनिकों की जुवां पर चीन के युद्ध से लेकर ऑपरेशन करगिल विजय तक की पराक्रम की गाथाएं हैं। नौरंगाबाद निवासी हवलदार रामजीलाल ने 1962 में चीन सेना से युद्ध में हिस्सा लिया था। राजपूत रेजिमेंट के कैप्टन रेख सिंह ने 1971 के भारत-पाक युद्ध तथा 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार में शामिल रहे। वे श्रीलंका में शांति सेना में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इस गांव के सभी घरों की दीवारों पर भारतीय सेना की वर्दियां टंगी देखी जा सकती हैं।
शहीद स्मारकों से बढ़ता जज्बा
करगिल युद्ध में शहीद हुए नायक महेन्द्र सिंह के छोटे भाई निर्भय सिंह बताते हैं कि उनके भाई की शहादत से नौजवानों में सेना में भर्ती होने का जज्बा बढ़ा है। स्मारक के बीच सबसे कम उम्र के शहीद विमल सिंह की प्रतिमा राष्ट्र की सुरक्षा के जोश को बढ़ाती है। विमल सिंह के बड़े भाई खेम सिंह बताते हैं कि 2017 में युद्धाभ्यास के दौरान देहरादून के पास विमल वीरगति को प्राप्त हुए थे। नक्सली हमले में शहीद हुए असिस्टेंट कमांडेंट हनुमंत सिंह के पुत्र नवदीप बताते हैं कि उनके परिवार में ही नहीं, पूरे गांव में देश रक्षा का जुनून है।