आर्या ज्यादा चल फिर नहीं सकतीं, पर नेता जी का नाम सुनते ही उनके चेहरे के हाव-भाव अलग ही दिखने लगते हैं। कैप्टन आर्या कहती हैं कि नेता जी अक्सर मीटिंग के दौरान कहा करते थे कि आजादी हाथ जोड़कर नहीं मिलती उसे छीननी पड़ती है, इसलिए तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। नेता जी के इन्हीं शब्दों को सुनकर कारवां बनता गया। सेना तैयार हो गई और गोरों पर हम टूट पड़े। गोरों के गोले आकाश से बम बरसा रहे थे, हम भी आजादी के तराने गुनगुना कर उन्हें मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। एक गोला मकान के बाहर फटा, सैनिकों के लहू से जमीन लाल हो गई और फिर हमने अकेले दो दर्जन फिरंगियों को मौत के घाट उतार कर बदला ले लिया।
बर्मा में हुआ था जन्म
मूलरूप ये फैजाबाद जिले के रहने वाले श्यामा प्रसाद पांडेय, जिन्हें बर्मा में बतौर पोस्टमास्टर पद की नौकरी मिल गई। वे पत्नी छदैयना के साथ वहीं बस गए। पांडेय के घर मई 1920 में एक नन्हीं परी ने जन्म लिया। पिता ने उसका नाम मानवती पांडेय रखा। पिता अक्सर देश के लोगों पर अंग्रेज सरकार के जुल्मों की दास्तां अपनी बेटी को सुनाते। बेटी जब प्रदह साल की हुई तो वो पिता के साथ अपने पैतृक निवास फैजाबाद आई। यहां अंग्रेजों के जुल्मोसितम देखकर मानवती का खून खौल उठा और दसवीं की पढ़ाई के बाद वो बर्मा में ही रहकर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करती रहीं। मानवती बताती हैं कि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इन्डियन नेशनल आर्मी नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया गया। इसकी संरचना रासबिहारी बोस ने जापान की सहायता से टोकियो में की।
मुलाकात के बाद बनाई गईं महिला कमांडर
मनवती आर्या बताती हैं कि सुभाष चन्द्र बोस जून 1943 में जापान पहुंचे और ं टोकियो रेडियो से घोषणा की कि अंग्रेजों से यह आशा करना बिल्कुल व्यर्थ है कि वे स्वयं अपना साम्राज्य छोड़ देंगे। हमें भारत के भीतर व बाहर से स्वतंत्रता के लिये स्वयं संघर्ष करना होगा। इससे गद्गद होकर रासबिहारी बोस ने 4 जुलाई 1943 को 46 वर्षीय सुभाष को इसका नेतृत्व सौंप दिया। इसी के बाद इनकी फौज में कई क्रांतिकारी शामिल हुए, उनमें से एक हम भी थे। जलुई 1944 का माह था, नेता जी कुन्नूर स्थित आर्मी कैंप में ठहरे थे। इसी दौरान कैप्टन लक्ष्मी सहगल में हमें नेता जी से मिलवाया। उन्होंने हमसे प्रश्न किया की मानवती तुम आजाद हिन्द फौज क्यों ज्वाइन करना चाहती हो तो हमने कहा कि नेता जी घुटन हो रही है आजादी चाहिए। शरीर में जितना खून है हम बहा देंगे, पर अंग्रेजों के जुल्म सितम अब नहीं सहेंगे। हमारी बात से प्रभापित होकर उन्होंने हमें 3000 महिलाओं का कमांडर मना दिया।
क्रांतिकारी पत्रकार से किया विवाह
मनवती ने बताया कि 1944 से लेकर 1946 तक हमने कई लड़ाईयों में भाग लिया। इसी दौरान हमें भारत जाने का आदेश मिला। हम फैजाबाद में अंग्रेजों के खिलाफ महिलाओं का संगठन बनाया और आजादी की लड़ाई जारी रखी। इसी दौरान हमने फारवर्ड ब्लॉक पार्टी की सदस्यता ले ली। 1946 में सुल्तानपुर में पार्टी की बैठक हुई, जिसमें डॉक्टर कृष्णचंद्र आर्या शामिल हुए। पहली ही मुलाकात में हमने उनका भाषण सुना तो हमने उनके साथ काम करने का मन बना लिया। 1947 में डॉक्टर आर्या के बुलावे पर हम कानपुर आ गए और इनके अखबार अग्रनामी में नौकरी करने लगी। इसी बीत प्यार हो गया और हमने मंदिर में सात फेरे ले लिए। अग्रनानी अखबार स्वतंत्रा आंदोलन स्वतंत्रा आंदोलन से जुड़ा था, इसी के चलते ये पब्लिक के दिल में बसता था। मानवती आर्या ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की झांसी रेजीमेंट की कैप्टन डॉ.लक्ष्मी सहगल के साथ आजादी की लड़ाई में भाग लिया।
जां रहें ना रहे, हिंद मेरा आजाद रहे
97 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मानवती आर्या ने कहा कि आजादी पाने के बाद हमने कुछ पाया है वहीं काफी कुछ खोया है। हम अपनी संस्कृति को भूल चुके हैं। खादी को भूल चुके हैं। आज फैशन के दौर में कोई भी सिर पर टोपी नही लगाता। धोती की जगह पैंट ने ले ली है। इस दौरान उन्होंने कुछ ‘मेरी जां रहें ना रहे, हिंद मेरा आजाद रहे। माता के सिर पर ताज रहे, मां बहनों की लाज रहे जैसी कुछ लाइनें भी सुनाई। कहतीं हैं, कि देश से यदि भ्रष्टाचार मिट जाए तो ये देश एक बार फिर सोने की चिड़िया बन जाएगा। उन्होंने कहा कि अधिकारी अपना पेट भरने में लगे हैं। कोई उन्हें बता दो कि आप न साथ कुछ लेकर आए थे। न ही कुछ लेकर जाएंगे। उन्होंने रेप पर सवाल उठाते हुए कहा कि आज आए दिन मां बेटियों के विषय में अखबार में उलटा सीधा छपता है। भ्रष्टाचार खत्म हो जाए तो यह समस्या भी खत्म हो जाएगी।