scriptइस देवस्थान की अनोखी है दास्तां, स्वयं हुआ था शिवलिंग स्थापित, नाग नागिन के होते हैं दिव्य दर्शन | untold story of mahakaleshwar temple here kanpur dehat | Patrika News
कानपुर

इस देवस्थान की अनोखी है दास्तां, स्वयं हुआ था शिवलिंग स्थापित, नाग नागिन के होते हैं दिव्य दर्शन

यहां नाग नागिन का जोड़ा भी मत्था टेकने आता है, जिसके दिव्य दर्शन के लिए लोग आस लगाते बैठे रहते हैं।

कानपुरAug 18, 2019 / 06:39 pm

Arvind Kumar Verma

mahakaleshwar mandir

इस देवस्थान की अनोखी है दास्तां, स्वयं हुआ था शिवलिंग स्थापित, नाग नागिन के होते हैं दिव्य दर्शन

अरविंद वर्मा

कानपुर देहात-हिंदू धर्म में देवी देवताओं की भी अलग आस्था है। लोग अपने अपने ईष्ट की पूजा अर्चना करने के लिए आतुर रहते हैं। वहीं भगवान भोलेनाथ के श्रद्धालुओं की आस्था भी अनोखी है। मान्यताओं के अनुरूप लोग मंदिरों में पूजा अर्चना कर बाबा को मनाते हैं। हम एक ऐसे शिव मंदिर की बात कर रहे हैं, जो शमशान में स्थापित तो है लेकिन समय समय पर यहां सैलाब उमड़ता है। स्थानीय लोगो के मुताबिक मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना किसी ने नही कराई बल्कि स्वयं स्थापित इस शिवलिंग का ऐसा चमत्कार है कि यहां नाग नागिन का जोड़ा भी मत्था टेकने आता है, जिसके दिव्य दर्शन के लिए लोग आस लगाते बैठे रहते हैं। यहां तक कि नागपंचमी में भी लोग बड़ी तादात में पहुंचते हैं और इस जोड़े के लिए दूध रखते हैं। रसूलाबाद के भीखदेव कहिंजरी में स्थित 500 वर्ष पुराना यह महाकालेश्वर मंदिर अपने आप में इतिहास को समेटे हुए है।
फिर इस तरह शिवलिंग हो गया स्थापित

सच तो ये है कि कानपुर देहात ऐतिहासिक व पौराणिक मंदिरों का जनपद है। रसूलाबाद क्षेत्र के कहिंजरी में स्थित महाकालेश्वर मंदिर इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण है। बताते हैं कि बहुत समय पहले यहां राजा गंगा सिंह गौर का महल था। राजा के सिपाही बाणेश्वर शिव मंदिर बानीपारा के पास से एक आकर्षक शिवलिंग को बैलगाड़ी से लेकर जा रहे थे। जैसे ही भीखदेव कहिंजरी के पास शमशान से उनका गुजरना हुआ कि तभी उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया। इससे बैलगाड़ी आगे नही बढ़ सकी। इसके बाद राजा ने सिपाहियों को शिवलिंग को हाथों से उठाकर लाने का आदेश दिया लेकिन पुरजोर कोशिश के बावजूद सिपाही शिवलिंग को वहां से नही हिला सके। जब शिवलिंग उस स्थान से हटा नहीं तो राजा के सिपाहियों ने शिवलिंग वहीं छोड़ दिया और वापस राजा के महल पहुंच गए। काफी वर्षों तक भीखदेव के पास जंगलों में ऐसे ही रखा हुआ जमीन में गड़ गया। लगभग सन 1954 में वहां से गुजरे तत्कालीन ग्राम प्रधान ने चमत्कारिक शिवलिंग को देखा तो हैरत में पड़ गए। उन्होंने शिवलिंग को जमीन से निकलवाने की कोशिश की लेकिन सफल नही हुए। इसके बाद उन्होंने वहीं स्थापना करा दी। जिसके बाद से निरंतर लगातार उस शिवलिंग की पूजा अर्चना होने लगी और महाकालेश्वर मंदिर नामकरण किया गया। इसके बाद मंदिर का सुन्दरीकरण हुआ।
संयोगवश होते हैं नाग नागिन के दिव्य दर्शन

यहां के लोगों का मानना है कि यह मंदिर बहुत प्राचीन है और आज भी रात्रि के समय में इस मंदिर में नाग और नागिन का जोड़ा आकर भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के आसपास भ्रमण करता है। लोगों ने कई बार सर्प के जोड़े को मंदिर में देखा लेकिन संयोगवश ही ऐसा होता है क्योंकि अक्सर लोग सर्प को देखकर डर जाते हैं।इसलिए वह सर्प का जोड़ा कम ही नजर आता है। यह जोड़ा अक्सर सावन मास में निकलता है।मंदिर के पुजारी नरेश दीक्षित ने बताया कि इस मंदिर में मांगी कोई भी अरदास खाली नहीं जाती है। मंदिर में दर्शन कर लेने मात्र से व्यक्ति को कभी अकाल मृत्यु नहीं आ सकती है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महाकालेश्वर शिव मंदिर में सावन मास में रुद्राभिषेक का कार्यक्रम होता है। जहां पर हजारों की संख्या में भक्तगण आते हैं यह मंदिर चौबेपुर मार्ग पर उत्तर दिशा में है जोकि पुराणों में भी वर्णित है। यहां पहुंचने के लिए कानपुर से 50 किमी पश्चिम दिशा में चलकर मंदिर पहुंचा जा सकता है। रसूलाबाद से 15 किमी की दूरी पर मंदिर स्थित है। बिल्हौर से 70 किमी दूरी पर बस से पहुंचा जा सकता है।

Hindi News / Kanpur / इस देवस्थान की अनोखी है दास्तां, स्वयं हुआ था शिवलिंग स्थापित, नाग नागिन के होते हैं दिव्य दर्शन

ट्रेंडिंग वीडियो