फिर इस तरह शिवलिंग हो गया स्थापित सच तो ये है कि कानपुर देहात ऐतिहासिक व पौराणिक मंदिरों का जनपद है। रसूलाबाद क्षेत्र के कहिंजरी में स्थित महाकालेश्वर मंदिर इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण है। बताते हैं कि बहुत समय पहले यहां राजा गंगा सिंह गौर का महल था। राजा के सिपाही बाणेश्वर शिव मंदिर बानीपारा के पास से एक आकर्षक शिवलिंग को बैलगाड़ी से लेकर जा रहे थे। जैसे ही भीखदेव कहिंजरी के पास शमशान से उनका गुजरना हुआ कि तभी उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया। इससे बैलगाड़ी आगे नही बढ़ सकी। इसके बाद राजा ने सिपाहियों को शिवलिंग को हाथों से उठाकर लाने का आदेश दिया लेकिन पुरजोर कोशिश के बावजूद सिपाही शिवलिंग को वहां से नही हिला सके। जब शिवलिंग उस स्थान से हटा नहीं तो राजा के सिपाहियों ने शिवलिंग वहीं छोड़ दिया और वापस राजा के महल पहुंच गए। काफी वर्षों तक भीखदेव के पास जंगलों में ऐसे ही रखा हुआ जमीन में गड़ गया। लगभग सन 1954 में वहां से गुजरे तत्कालीन ग्राम प्रधान ने चमत्कारिक शिवलिंग को देखा तो हैरत में पड़ गए। उन्होंने शिवलिंग को जमीन से निकलवाने की कोशिश की लेकिन सफल नही हुए। इसके बाद उन्होंने वहीं स्थापना करा दी। जिसके बाद से निरंतर लगातार उस शिवलिंग की पूजा अर्चना होने लगी और महाकालेश्वर मंदिर नामकरण किया गया। इसके बाद मंदिर का सुन्दरीकरण हुआ।
संयोगवश होते हैं नाग नागिन के दिव्य दर्शन यहां के लोगों का मानना है कि यह मंदिर बहुत प्राचीन है और आज भी रात्रि के समय में इस मंदिर में नाग और नागिन का जोड़ा आकर भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के आसपास भ्रमण करता है। लोगों ने कई बार सर्प के जोड़े को मंदिर में देखा लेकिन संयोगवश ही ऐसा होता है क्योंकि अक्सर लोग सर्प को देखकर डर जाते हैं।इसलिए वह सर्प का जोड़ा कम ही नजर आता है। यह जोड़ा अक्सर सावन मास में निकलता है।मंदिर के पुजारी नरेश दीक्षित ने बताया कि इस मंदिर में मांगी कोई भी अरदास खाली नहीं जाती है। मंदिर में दर्शन कर लेने मात्र से व्यक्ति को कभी अकाल मृत्यु नहीं आ सकती है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महाकालेश्वर शिव मंदिर में सावन मास में रुद्राभिषेक का कार्यक्रम होता है। जहां पर हजारों की संख्या में भक्तगण आते हैं यह मंदिर चौबेपुर मार्ग पर उत्तर दिशा में है जोकि पुराणों में भी वर्णित है। यहां पहुंचने के लिए कानपुर से 50 किमी पश्चिम दिशा में चलकर मंदिर पहुंचा जा सकता है। रसूलाबाद से 15 किमी की दूरी पर मंदिर स्थित है। बिल्हौर से 70 किमी दूरी पर बस से पहुंचा जा सकता है।