कानुपर। आर्यनगर विधानसभा सीट से चुनाव हारने के बाद कानपुर के दिग्गज नेता सलिल विश्नोई को भाजपा ने पीएम के संसदीय क्षेत्र की जिम्मेदारी दी। निकाय चुनाव में अपनी मेहनत के बल पर काशी में भगवा ध्वज फहराया। जिसके चलते भाजपा हाईकमान उन्हें इनाम के तौर राज्यसभा का टिकट दिया है। सलिल ने सोमवार को राज्यसभा के लिए नमांकन भी कर दिया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी की टीम में इन्हें महामंत्री का पद दिया गया जो मौजूद प्रदेश महेंद्रनाथ पाडेय ने उन्हें इसी पद पर बरकरार रखा। प्रदेश नेतृत्व ने निकाय चुनाव से पहले सलिल को पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र का प्रभारी बनाया, जहां उन्होंने बेतहर कार्य किया और इनाम स्वरूप राज्यसभा तोहफा दिया गया।
2017 का चुनाव हारने के बाद मिला पदकानपुर के कद्दावर भाजपा नेता व प्रदेश महामंत्री सलिल विश्नोई ने सोमवार को राज्यसभा चुनाव के निए अपना नमांकन पत्र भारा। इसकी खबर जैसे ही शहर के स्थानीय नेताओं को हुई तो वह खुशी से झूम उठे। नगर अध्यक्ष सुरेंद्र मैथानी ने कहा कि पूर्व विधायक महामंत्री सलिल विश्नोई पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं और उन्हें जो जिम्मेदारी मिली उसे बाखूबी निभाया। सलित विश्नोई जनरलगंज और आर्यनगर विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में इन्हें सपा के अमिताभ बाजपेयी ने इन्हें हरा दिया। आर्यनगर से चुनाव हारने के बाद पार्टी ने सलिल विश्नोई को नजरअंदाज करने के बजाए पार्टी का महामंत्री बना दिया।
संघ के चलते हार के बाद भी बढ़ा कदसलिल विश्नोई ने अपनी राजनीति की शुरूआत संघ के छोटे से कार्यकर्ता के तौर की थी। संघ की साखाओं में सुबह से जाकर कार्य करते। इसी दौरान संघ के जरिए इन्हें भाजपा में इंट्री मिली। भाजपा ने इन्हें विधानसभा चुनाव में उतारा, जहां सलिल ने जीत दर्ज की। यूपी सरकार के कैबिनेट मंत्री सतीश महाना के बाद सलिल विश्नोई कानपुर के दूसरे नेता हैं, जिनकी भाजपा और संघ के अंदर अच्छी पकड़ है। जानकारों का कहना है कि योगी सरकार में सलिल को मंत्री बनना तय था, लेकिन एन वक्त में राज्यसभा चुनाव आ गए और भाजपा ने इन्हें कमल का सिंबल थमा दिया। सलिल विश्नोई पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाते हैं। बतौर संघ प्रचारक जब भी पीएम नरेंद्र मोदी कानपुर आते तो सलिल विश्नोई को जयनारायण स्कूल जरूर बुलाते। इनके साथ कानपुर की गलियों में पैदल भ्रमण किया करते थे।
2002 में चुने गए विधायकसलिल विश्नोई 2002 में पहली बार विधायक के चुनाव में जीत कर उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सलिल का इंट्री हुई। 2007 विधानसभा चुनाव में फिर दूसरी बार विजयी हु। नए परसीमन में सलिल बिश्नोई का निर्वाचन क्षेत्र जनरलगंज से बदल कर आर्य नगर हो गया.। अखिलेश की लहर के बाद भी सलिल 2012 का विधानसभा चुनाव जीत गए। पर्यावरण और वृक्षारोपण को अपना आदर्श मानने वाले बिश्नोई, समाज की एकता और सफलता की खुद एक कहानी हैं!वे समय -समय पर उत्तर-प्रदेश विधानसभा में जीव-रक्षा व पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते रहे हैं, जिनमें से एक संदेश उत्तर प्रदेश विधानसभा में गूंजा विश्नोईयों पर्यावरण प्रेम ।
अरौया के मूल निवासी है विश्नोई सलिल बिश्नोई का जन्म औरैय्या के एक प्रतिष्ठित एवं संपन्न परिवार में में हुआ था। इनके गोविन्द विश्नोई और दादा श्यामलालविश्नोई औरैय्या के बड़े व्यापारी व निष्ठावान समाजसेवी थे। सलिल बिश्नोई की माता सुशीला बिश्नोई घरेलु महिला थीं। सलिल विश्नोई के बड़े चाचा हरगोविंद बिश्नोई उत्तर प्रदेश की सरकार के वशिष्ठ आई.ऐ.एस. अधिकारी रहे हैं और उनके छोटे चाचा श्री कृष्नागोविंद बिश्नोई उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में चीफ इंजिनियर रहे। सलिल बिश्नोई ने बी.एस.सी.- एल.एल.बी. तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद दालमिल के उद्योग को सफलतापूर्वक चलाते हुए अनेक व्यापारिक एवं सामाजिक संघटों का नेतृत्व किया। सलिल बिश्नोई ने कानपुर में बिश्नोई
मंदिर एवं धर्मार्थ भवन का निर्माण कराके बिश्नोई समाज को समर्पित किया। सलिल बिश्नोई की पत्नी डॉक्टर रोचना बिश्नोई कानपुर विश्वविद्यालय में संगीत की प्राध्यापिका हैं, इनकी तीन संताने(दो बेटीयां और एक बेटा)हैं।
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