मिलों का नाम सुनते ही बिफर पड़े सांसद जी
2014 के लोकसभा के चुनाव के वक्त भाजपा ने कद्दावर नेता डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी को कानुपर से टिकट देकर उतारा। इनके खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश जासयाल पर दांव लगाया। पर मोदी लहर और लोकलुभावन वादों के चलते पब्लिक ने घर के बजाए बाहरी को यहां से जिता दिया। लेकिन चार साल के कार्यकाल के दौरान सांसद डॉक्टर जोशी गिनती के दिन नही शहर आए। पूर्व मंत्री के कार्यकाल के दौरान लाल इमली की मशीने चलते थीं लेकिन इन चार साल के दौरान मिल में सन्नाटा पसरा है। तीन सौ से ज्यादा फैक्ट्रियां बंद हो गई। जेके कॉटन में एक हजार मजदूर और कर्मचारी काम करते थे, पर इन्हीं के कार्यकाल के दौरान उसमें भी ताला जड़ गए। बूजेंद्र स्वरूप पार्क में एक दुकान में चाय की चुस्कियां ले रहे मजदूर नेता महेश सिंह कहते हैं, चुनाव के वक्त तो चाय की तरह मीठे-मीठे वादे किए, जीतने के बाद जब भी मिले तो सांसद जी की जुबा से कड़ुए शब्द ही निकले। अभी कुछ दिन पहले कानपुर आए थे। हमने उनसे मिलें कब चालू होंगी पूछा तो बिफर पड़े और कहा कि यह मेरे हाथ में नहीं है, कहकर निकल लिए।
तबसे सांसद जी ने हमें नहीं दिखे
बृजेंद्र स्वरूप में बैठे दर्जनभर से ज्यादा लोगों से जब बात की गई तो उनका दर्द जुबां पर आ गया। अज्जू भईया, कहते हैं गुरु डॉक्टर साहब की गिनती भाजपा के बड़े नेताओं में होती है और इसी के कारण हमने अपने घर के भाई पूर्व मंत्री श्रीप्रकाश को वोट न देकर इन्हें जिता दिया। तभी बगल में बैठे रज्जन तिवारी कहते हैं कि जबसे जीते तबसे सांसद जी ने हमें नहीं दिखे। हां कभी कभार अखबार में उनकी तस्वीर जरूर दिख जाया करती है और उसे देख कर ही संतोष कर लेते हैं।
चुनाव के वक्त अपनी कई सभाओं में सांसद जोशी ने कानपुर को मैनचेस्टर आफ इस्ट बनाए जाने की घोषणा की थी। इसी के चलते कई मजदूर संगठन इनके साथ खड़े हो गए। मजूदरों का शहर अपने पुराने नेता को छोड़ भाजपा के पक्ष में खड़ा हो गया। इसी के कारण कानुपर नगर से डॉक्टर जोशी सांसद चुने गए। अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान जब भी वह कानपुर आए तब यही कहते कि बंद मिलों से ताले हटेंगे और चिमनियों से धुआ निकलेगा, पर ऐसा हुआ नहीं। मजदूर नेता महेश सिंह कहते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल के दौरान लाल इलमी और जेके कॉटन चल रही थी। भाजपा के आने के बाद मजदूरों को उम्मीद बढ़ी थी कि मिलों का शहर गुलजार होगा। बेराजगार युवा के हाथों में रोजगार होगा पर ऐसा हुआ नहीं।
केंद्रीय विश्वविद्यालय ढ़ूढ़ रहे स्टूडेंट्स
कानपुर को शिक्षा का हब कहा जाता है। यहीं से पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जैसे बड़े-बड़े नेता व ब्यूरोकेट्स, उद्यमी पढ़ लिखकर निकले हैं, बावजूद यहां पर केंद्रीय विश्वविद्यालय नहीं है। काकादेव में आईआईटी की तैयारी कर रहे विपिन खरे कहते हैं कि यहां इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जाने वाले स्टूडेंट्स के लिए आईआईटी, एचबीटीयू और सीएसए शिक्षण संस्थाएं हैं, पर ग्रेजुएशन व पोस्टग्रेजुएन सहित अन्य शिक्षा के लिए अच्छा विश्वविद्यालय नहीं। चुनाव के वक्त सांसद जोशी ने घोषणा की थी कि वह कानपुर में केंद्रीय विश्वविद्यायल की अधारशिला रखेंगे। चार साल गुजर और कुछ माह के बाद लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाएगी। सांसद जी फिर आएंगे और वही दर्जनभर वादे कर वोट मांगेगे। जीतने के बाद कानपुर के बजाए दिल्ली में शिफ्ट हो जाएंगे।