डेंगू और कोरोना, दोनों ही संक्रमण के प्रभाव विपरीत होते हैं। कोरोना का संक्रमण होने पर खून में थक्के बनते हैं। लेकिन डेंगू में ऐसा नहीं है। डेंगू प्लेटलेट्स कम करता है। इस कारण खून पतला होने लगता है, लेकिन खून के थक्के नहीं जमते। इसका असर कुछ यूं होता है कि फेफड़े की छोटी-छोटी रक्त नलिकाओं को पूरी ऑक्सीजन मिलती रहती है। और मरीजों को वेंटीलेटर की जरूरत भी नहीं पड़ती। चिकित्सकों ने बताया कि इसी वजह से प्रदेश में जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के हैलट अस्पताल के कोविड आइसीयू का रिकवरी दर काफी बेहतर है। अगस्त माह की आरंभ में कोविड-19 के चार मरीजों में डेंगू की पुष्टि हुई थी, लेकिन अन्य कोरोना मरीजों की तरह उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत ही नहीं पड़ी। यह देश मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. प्रेम सिंह व एनस्थीसिया विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. चंद्रशेखर ने इन मरीजों की केस स्टडी कर उनके खून, एक्सरे व सीटी स्कैन की मॉनीटरिंग की। इसमें यह तथ्य सामने आए।
हैलट अस्पताल के प्रोफेसर, मेडिसिन एवं नोडल अफसर कोविड हॉस्पिटल, न्यूरो साइंस सेंटर डॉ. प्रेम सिंह के मुताबिक दोनों वायरस घातक हैं। इनका इलाज नहीं है, सिर्फ लक्षणों के आधार पर ही इलाज किया जाता है। यहां कई कोरोना संक्रमितों की जान डेंगू की वजह से बच गई। उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी। अब तक 19 केस आए हैं, उनमें से 17 स्वस्थ होकर जा चुके हैं। विलंब से आने की वजह से सिर्फ दो की मौत हुई है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में एनस्थीसिया विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि कोरोना संक्रमितों को डेंगू संक्रमण होना फायदेमंद रहा। उन्हें वेंटीलेटर की जरूरत नहीं पड़ी और न ही जटिलताएं हुईं। मामूली ऑक्सीजन से ही स्वस्थ हुए। हालांकि उन्हें हॉस्पिटल में अधिक रुकना पड़ा। उनकी कोविड रिपोर्ट विलंब से निगेटिव हुई।