वरिष्ठ आलोचक आचार्य मोहनकृष्ण बोहरा ने कहा कि हर फूल की अपने सुगंध होती है, वही उसकी पहचान भी बनती है । ठीक इसी तरह हर समर्थ रचनाकार की अपनी शैली होती है और उसका सजग पाठक उस शैली से उसकी पहचान पा लेता है। उन्होंने कहा कि आलोचक का कर्तव्य यह होता है कि वह आम पाठक को उस रचनाकार के वैशिष्ट्य का परिचय करवाए , लेकिन हर रचनाकार इतना समर्थ नहीं होता कि अपनी एक पृथक पहचान बना सके। उसकी साधना ही उसे ऐसी शैली देती है जो उसकी पहचान बनती है। यहां शैली से अभिप्राय निरी भाषा शैली से नहीं है। यह उस रचनाकार की रचनाओं का एक पैटर्न होता है जो उसकी पहचान बनता है। यह पैटर्न रचना संगठन में भी होता है और भाषा में भी होता है। आलोचक इसी की पड़ताल करता है। बोहरा ने कहा कि मनोहरसिंह राठौड़ की प्रारंभिक राजस्थानी कहानी ने ऐसी पहचान लेने का कुछ प्रयत्न किया है, जो कहानियां स्वयं राठौड़ ने लिखी हैं, उन पर कहीं हिन्दी कथाकार प्रेमचंद तो कहीं बांग्ला कथाकार शरतचंद्र का प्रभाव दिखाई पड़ता है, लेकिन घटना आधिक्य से बचाते हुए इन्होंने उस परंपरा को नया विकास देने का प्रयत्न भी किया है। प्रश्नोत्तरी सत्र में मुरलीधर वैष्णव,रतनसिंह चांपावत, डॉ अशोक माथुर ,सत्यदेव संवितेंद्र व श्याम गुप्ता शांत ने सवाल पूछे ,जिनका राठौड़ ने विस्तार से जवाब दिया। आरंभ में अतिथियों ने मां सरस्वती को पुष्प अर्पित किए। डॉ भावेंद्र शरद जैन ने मुख्य वक्ता को गांधी डायरी भेंट की। अंत में कवयित्री प्रगति गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कवयित्री मधुर परिहार ने संचालन किया। कार्यक्रम में प्रो रामबक्ष जाट,हबीब कैफी,डॉ आईदानसिंह भाटी, डॉ हरीदास व्यास, डॉ. पदमजा शर्मा, हरिप्रकाश राठी ,माधव राठौड़ ,कमलेश तिवारी,गिरधर गोपालसिंह भाटी,तारा प्रजापत ,शैलेंद्र ढड्ढा, रेणु वर्मा,संतोष चौधरी, दशरथ सोलंकी,डॉ वीणा चूंडावत,शिवानी, मंजू शर्मा,अशफाक अहमद फौजदार,किसनाराम,अशोक चौधरी,प्रतीक भारत और एमएल जांगिड़ सहित कई साहित्यकार व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।