अखंड ज्योत मंदिर महंत महाबलवीर गिरि के शिष्य खेत गिरि बताते हैं कि मंडोर साम्राज्य के प्रतिहार शासक सुर सिंह के पाटवी पुत्र वंश के शासक राणा उगम सिंह इंदा ने विक्रम संवत 1306 में कंटालिया गांव वर्तमान में कुई इंदा गांव बसाया था। तब मां चामुंडा का छोटा सा मंदिर एक कैर के पेड़ के नीचे सिर्फ मूर्ति के रूप में मौजूद था । तब छोटा मंदिर निर्माण कर अखंड ज्योत शुरू की गई थी । ढाई असवार गांव यानी बालेसर सत्ता , बालेसर दुर्गावता एवं कुई इंदा गांव के लोगों की भी मंदिर की दिव्यज्योत के प्रति गहरी आस्था है।
बाड़ी का थान नाम से प्रसिद्ध है मंदिर मंदिर के जानकार बताते हैं कि चामुंडा माता मंदिर के पुजारी सिंध प्रांत से आए महंत मेघगिरि के उत्तराधिकारी महंत भवानी गिरि ने विक्रम संवत 1700 में चामुंडा माता मंदिर की मूर्ति के चारों तरफ एक रात में भव्य मठ बनाया था। उसी दौरान ज्वार( गेहूं ) का बीज बोकर छोटी सी हरी भरी एक बाड़ी की स्थापना की थी । जिनमें चैत्रीय एवं आसोज नवरात्रा को बाड़ी को सींचा जाता है । तब से यह मंदिर बाड़ी के थान के नाम से भी विख्यात हो गया है।